महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : परमात्मा ने साधु और सज्जनों की तुलना मधुमक्खी से की है, क्योंकि मधुमक्खी न तो विष उत्पन्न करती है और न ही किसी को नुकसान पहुँचाती है। वह केवल अपने भीतर के मधुरता रूपी गुणों को सभी को देती है। हमारा जीवन भी ऐसा ही होना चाहिए। तभी हमारे जीवन में श्रेष्ठता का उदय हो सकता है। इसके लिए हमें यह चिंतन करना आवश्यक है कि स्वयं को पूज्य कैसे बनाया जा सकता है और उस पूज्य बनने की दिशा में कैसे चला जा सकता है, ऐसा विचार प. पू. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने व्यक्त किया। वे परिवर्तन चातुर्मास 2025 के अंतर्गत आयोजित प्रवचनमाला में बोल रहे थे।
प. पू. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने कहा, “यदि आप सामने वाले में अच्छाई देखते हैं तो आपको भी अच्छाई ही प्राप्त होती है। लेकिन यदि उसमें बुराई देखी तो फिर अपने हिस्से में भी वही बुराई आती है। इसलिए आपकी दृष्टि कैसी है, परिस्थितियों को देखने का आपका दृष्टिकोण कैसा है, यह जानना आवश्यक है।”
पूज्य बनने का अर्थ यह नहीं कि लोग आपकी पूजा या अर्चना करें, बल्कि इसका अर्थ है अपने भीतर की श्रेष्ठता को प्रकाशित करना। पूज्यता प्राप्त करने का एक और महत्वपूर्ण गुण यह है कि जो व्यक्ति रत्नाधिक है, ज्ञान और ध्यान में श्रेष्ठ है, उसके प्रति विनम्रता का भाव होना चाहिए जब आप उसके सान्निध्य में हों।
प. पू. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने आगे कहा, “यदि आपसे उम्र में या पद में छोटा व्यक्ति दीक्षा लेता है, तो उसके प्रति ऊँच-नीच या श्रेष्ठ-कनिष्ठ का भाव नहीं होना चाहिए, बल्कि ‘वह रत्नाधिक है’ ऐसा सत्यवादी भाव होना चाहिए। सत्ता और संपत्ति के अहंकार से नीचे उतरना सरल है, लेकिन संयम, साधना, ज्ञान और तपस्या के अहंकार रूपी हाथी से उतरना अत्यंत कठिन होता है। जो इस अहंकार से उतरता है, वही वास्तव में पूज्य कहलाता है।”
श्रद्धा निर्माण होने में पूरा जीवन निकल सकता है, लेकिन श्रद्धा टूटने के लिए एक क्षण ही काफी होता है। इसलिए जिसे आप वंदन कर रहे हैं, उसके प्रति सच्ची श्रद्धा रखें। उसका विश्लेषण या आलोचना न करें, क्योंकि इससे आपकी अपनी श्रद्धा का भाव नष्ट हो सकता है।
इसलिए जिन व्यक्तियों में जेष्ठता, श्रेष्ठता या दैवत्व है, उनका आदर और सम्मान करना आना चाहिए। दूसरों की आंतरिक महानता और श्रेष्ठता को देखना आना चाहिए, तभी हमारी अपनी श्रेष्ठता भी जागृत होने लगती है।
अपने भीतर के अहंकार को तोड़ने की साधना करते रहना ही श्रेष्ठता और पूज्यता को प्राप्त करने का मार्ग है। यदि यह अहंकार बना रहा, तो वही आपके भीतर की श्रेष्ठता को दबाने वाला सूत्र और आपके देवत्व को छिपाने वाला मंत्र बन जाएगा।
