श्री आदिनाथ जैन संघ में किया मार्गदर्शन
महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : जो शरीर की परवाह करता है वह फैमिली डॉक्टर कहलाता है, जो आत्मा की परवाह करता है वह फैमिली गुरु कहलाता है. इस तरह के विचार पं. राजरक्षितविजयजी इन्होने व्यक्त किये।
श्री आदिनाथ सोसायटी जैनसंध में गुरुपूर्णिमा पर्व के अवसर पर पंन्यास राजरक्षितविजयजी, पंन्यास नयरक्षितविजयजी आदि साधु-साध्वीजी की उपस्थिथि में सद्गुरु शरणम् का संगीतमय एवं भावपूर्ण कार्यक्रम आयोजित हुआ। इस अवसर पर मुंबई, सूरत, नवसारी, भोर और पुणे से सैकड़ों गुरु भक्त आशीर्वाद लेने आए।
पं. राजरक्षितविजयजी ने कहा कि सद्गुरु की महिमा भगवान से भी बड़ी है। भगवान मौन है. प्रभु सद्गुरु के मुख से बोलते हैं। प्रभु ने मोक्ष प्राप्ति के लिए तपस्या, आत्मचिंतन, ध्यान और सेवा के अनेक मार्ग बताये हैं। लेकिन शिष्य के लिए कौन सा मार्ग उपयुक्त है इसका निर्णय सद्गुरु करते हैं।
एक मेडिकल स्टोर में बुखार सर्दी की कई दवाएं हैं। लेकिन मरीज को कौनसी दवा लेनी यह डॉक्टर तय करता है। जो शरीर की देखभाल करता है उसे फेमिली डॉक्टर कहा जाता है, और जो आत्मा की देखभाल करता है उसे फेमिली सद्गुरु कहा जाता है। सद्गुरु के प्रति सम्मान मोक्ष का ताला खोलने की मुख्य कुंजी है।
फेमिली डॉक्टर, फेमिली वकील की तरह फेमिली गुरु होना चाहिए। युवा व्याख्याता पं.नयरक्षितविजयजी ने कहा कि संसार में कई प्रकार के गुरु होते हैं। मोटिवेशन स्पीकर (गुरु), प्रबंधन गुरु, योग गुरु, कौशल गुरु आदि लेकिन सद्गुरु मिलना अत्यंत दुर्लभ है।
सद्गुरु बाहर से सख्त और अंदर से नरम होते हैं। सद्गुरु का पहला कर्तव्य शिष्य को खाली करना है। जो सद्गुरु के पास खाली होता है उसे सद्गुरु भर देते हैं। सद्गुरु के पास जाते समय चंपल और अक्कल बाहर ही छोड़कर जाना चाहिए। सेटगुरु, स्वीटगुरु दुनिया में बहुत होंगे लेकिन सद्गुरु मिलना बहुत मुश्किल है। जिसे सद्गुरु की गोद मिल जाती है, उसकी निगोद की सफर सदैव के लिए समाप्त हो जाती है।
