महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : श्री आदिनाथ सो. जैन संघ पूना में पंन्यास राजरक्षितविजयजी महाराज ने कहा कि मनुष्य भव बुरे कार्य करने के लिए नहीं बना है। लेकिन यह भव आज तक किए गए बुरे कार्य को सुधारने के लिए है।
मानव भव की तुलना टावर में लगी घड़ी से की जाती है। यदि रीस्ट वोच खराब हो जाए तो उस व्यक्ति को कष्ट होता है। यदि दीवार की घड़ी बिगड जाए तो परिवार में अशांति फैल जाती है। लेकिन अगर टावर की घड़ी बिगड गई तो पूरा गांव परेशान हो जाएगा। संक्षेप में, यदि मनुष्य विवेकी हो जाए, तो बहुतों को लाभ होगा।
यदि यह अविवेकी हो जाए तो यह कई लोगों के लिए हानिकारक हो जाता है। प्रभु महावीर और हिटलर दोनों मनुष्य बन गये। लेकिन हिटलर ने मूर्खतापूर्वक 60 लाख यहूदियों को ख़त्म करने का आदेश दिया। प्रभु महावीर ने विवेक को विकसित कर करोड़ों आत्माओं को आध्यात्मिक मार्ग दिखाकर महान उपकार किया। बुद्धिमान व्यक्ति की दृष्टि अद्भुत होती है।
यदि हंस के पास दूध-पानी हो तो वह पानी छोड़ देता है और दूध पी लेता है। अविवेकी में स्वार्थ, अहंकार, आसक्ति आदि अनेक दोष होते हैं। विवेकी में परोपकारिता, नम्रता, सरलता आदि गुण हैं। वर्तमान समय में विवाह आयोजनों पर फिजूलखर्ची हो रही है। प्री-वेंडिंग, बैचलर पार्टी, डांस पार्टी आदि जैसी अश्लील गतिविधियाँ बढ़ रही हैं।
जब साधार्मिक भाई शिक्षा और चिकित्सा के खर्च में कंगाल हो रहे हैं। फैशन, व्यसनों पर लाखों रुपये खर्च करना उचित नहीं है जब दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो। धार्मिक भाई कमज़ोर होंगे तब धर्म भी कमजोर हो जायेगा। जैसा कि पू. गुरुमा श्री चन्द्रशेखरविजय महाराज कहते हैं, अधिकतम धन का उपयोग साधार्मिक भक्ति में किया जाना चाहिए – बाल संस्करण और शासन प्रभावना के कार्य अनुकम्पा मे करना है।
