महाराष्ट्र न्युज नेटवर्क : अभिजित डुंगरवाल
पुणे : ख़राब हालात को बदलना हमारे हाथ में नहीं है. लेकिन मानसिकता बदलना हमारे हाथ में है। स्थिति कर्म के अधीन है यह प्रतिपादन पं. राजरक्षितविजयजी ने किया।
श्री कुंथुनाथ जिनालय सुभाषनगर जैनसंध पूना पं. राजरक्षितविजयजी, पं. नयरक्षितविजयजी आदि मुनि भगवंत पधारने पर भाई-बहनों ने मंगल कलश के साथ तीन परिक्रमा देकर सकल संघ की अक्षत से स्वागत किया।
पं. राजरक्षितविजयजी ने भरचक सभा से कहा, “मानवभाव सफल करना है या सार्थक?” धन-बल-सौंदर्य की प्राप्ति सफल मानी जाती है, लेकिन ये सफलता इस भव तक सीमित है. मानवता को सार्थक बनाने के लिए दया, करुणा, कृतज्ञता, सरलता आदि गुणों को अर्जित करना आवश्यक है। ताकि इहलोक और परलोक दोनों सार्थक हो जाएं। मानव जीवन में सबसे महत्वपूर्ण चीज है समाधि… जीवन में अच्छी या बुरी घटनाएं घटित होने पर समाधि बनाए रखना बहुत जरूरी है। ख़राब हालात को बदलना हमारे हाथ में नहीं है. लेकिन मानसिकता बदलना हमारे हाथ में है। स्थिति कर्म के अधीन है। मनस्थिति स्वतंत्र है. जब नरसिंह मेहता की पत्नी वैकुंठवासी हो गईं, तो उन्होंने कहा, भलहु भागी जंजाल,सुखे भजशुं श्री गोपाल… ऐसी कठिन परिस्थिति में भी भगवान की भक्ति के कारण वह अपने मन की खुशी बरकरार रख सके,जब शेक्सपियर कि की पत्नी अभी जीवित थी पर उसकी मृत्यु की कल्पना से वह रोने लगा। पं. नयरक्षितविजयजी ने कहा कि अगर स्कूल का इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत हो, लेकिन शिक्षक कमजोर हों तो मातापिता अपने बच्चों को उस स्कूल में नहीं भेजते हैं। यदि देरासर बड़ा हो, जैनियों के अनेक घर हों परन्तु उपाश्रय न हो तो सद्गुरु का सत्संग नहीं होता।मंदिर से ज्यादा उपाश्रय की अधिक समर्थन की आवश्यकता है। उपाश्रय होने के कारण नियमित रूप से सत्संग किया जाता है और सत्संग करने से सारी पूजा-सामयिक-प्रतिक्रमण-तप-जप सब कुछ अपने आप याद आ जाता है। दिनांक 16/17 जनवरी सुबह 8:30 बजे सुभाषनगर जैनसंध में प्रवचन, रात्रि 9:00 बजे भाईयों के लिए नयरक्षितविजयजी का व्याख्यान होगा।
