महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : चलने में थकान महसूस होती है। बोलते समय मुँह दुखता है। घर और ऑफिस का काम करने से शरीर थक जाता है। लेकिन क्या हम अनंत जन्म और मृत्यु से थक गए है? फुटबॉल के मैदान पर, खिलाड़ियों के किक मारते ही फुटबॉल इधर-उधर होता रहता है। इस प्रकार, चौदह राज्यों के मैदान में, हमारी आत्मा कर्म की मार खाते हुए एक भव से दूसरे भव में भटक रही है।
इस संसारचक्र को रोकने के लिए इन चातुर्मास में सत्संग करना चाहिए। सत्संग जीवन विकास का आधार है। इस तरह के विचार पंन्यास राजरक्षितविजयजी ने आदिनाथ जैन संघ मे व्यक्त किया।
पंन्यास राजरक्षितविजयजी ने कहा मानवभव अजन्मा (सिद्ध) बनने की साधना के लिए है। आर्य देश की माता मदालसा, अनसूया, गंगा, कुंती आदि ने अपने बच्चों को बचपन से ही संस्कार देकर सज्जन या संत बनाने का बहुत प्रयास किया।
तो इस देश को भीष्म, पांडव, हनुमान, हेमचंद्रसूरि जैसे तेजस्वी, ओजस्वी, वीर रत्न मिले। साढ़े बारह वर्ष की साधना के बाद प्रभु महावीर स्वामी जी ने प्रथम देशना में मानवभव की महानता का परिचय दिया। मानवता की प्राप्ति से कार्य पूरा नहीं होता।
लेकिन इसे सार्थक बनाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। इस चातुर्मास में सामूहिक बीस स्थानक की तपस्या होगी। सभी तीर्थंकर भगवान इस तपस्या से अरिहंत परमात्मा बन जाते हैं।
