महाराष्ट्र जैन वार्ता : अभिजित डुंगरवाल
पुणे : जब स्थिति नहीं बदली जा सके तो मन की स्थिति बदलें ऐसा प्रतिपादन पं. राजरक्षितविजयजी ने किया।
श्री शांतिनाथ जिनालय पेठ-वडगांव जैनसंध में अजितशेखरसूरिजी, पं. राजरक्षितविजयजी उपस्थित थे। सकलसंघ ने एकत्रित होकर पूज्यश्री को प्रणाम किया। पं. राजरक्षितविजयजी ने कहा कि आज का बड़ा वर्ग शारीरिक से ज्यादा मानसिक रूप से पीड़ित है। यह दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाली डिप्रेशन की दवा है। तन की दवा अभी भी पाई जा सकती है।
लेकिन मन की दवा पाने का कोई पता नहीं दिखता। मन को शांत करने के लिए सकारात्मक सोचें। परिस्थिति कैसी भी हो। व्यापार में मंदी रहेगी, शरीर में रोग रहेगा, पत्नी नाराज रहेगी। ऐसे में खुश रहने के लिए व्यक्ति को मन की स्थिति बदलनी होगी। कोई भी विपरीत परिस्थिति कर्म के अधीन है।
लेकिन मन की स्थिति स्वतंत्र है। यद्यपि गजसुकुमल मुनि के सिर पर अग्नि की चिता रखी हुई थी, फिर भी उनके ससुर सॉमिल ने उन्हें परोपकारी मानकर विपत्ति को आशीर्वाद में बदल दिया। नई पीढ़ी को शिक्षा के साथ संस्कार देने की अपील की। उन्होंने अभिभावकों को भगवान की आराधना कर बच्चों को शिबिर भेजने के लिए प्रेरित किया।
आधुनिकतावाद पीड़ितत्व का जहर सोखने के लिए बच्चों को संस्करण शिबिरों में भेजना नितांत आवश्यक है। पं. ओमशेखर विजयजी ने कहा, जीवन में बहुत कुछ दोहराया, अब बदलना शुरू करो। समृद्धि से अधिक शांति को महत्व दें। श्री शांतिनाथ प्रभु की भक्ति जीवन में शांति-समाधि और समृद्धि प्रदान करती है।
