पुणे में आचार्य और उनके संघ का भव्य स्वागत
महाराष्ट्र जैन वार्ता : अभिजित डुंगरवाल
पुणे : दुर्घटनाओं को रोकने के लिए रोडब्लॉक बनाए जाते हैं, उसी प्रकार हमें अपने जीवन में भी दुर्घटनाओं से बचने के लिए गुरु करना चाहिए। गुरु के बिना हमारा जीवन पूर्ण नहीं हो सकता। जीवन का ज्ञान विशुद्धि के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
ज्ञान ही गुण है। जिसके पास ज्ञान है, वह कभी आक्रमक नहीं हो सकता। जीवन को सफल बनाने के लिए ज्ञान प्राप्त करना जरुरी है, इन शब्दों में चार्यशिरोमणि प. पू. १०८ आचार्य श्री विशुद्धसागरजी मुनिमहाराज ने जैन समाज को संबोधन किया।
चर्याशिरोमणि प. प. १०८ आचार्य श्री विशुद्धसागरजी मुनिमहाराज अपने ३१ शिष्यों के साथ कोल्हापुर में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के लिए दिल्ली से पधारे हैं। वह रविवार (७ अप्रैल) को पुणे पहुंचे। पुणे के माणिक बाग जैन मंदिर में (१४ अप्रैल) को उनका स्वागत किया गया।
इस अवसर सकल दिगंबर जैन समाज एवं विभिन्न संगठनों की ओर से राजाराम पुल पर उनका भव्य स्वागत किया गया। सकल दिगंबर जैन समाज के अध्यक्ष मिलिंद फड़े, माणिकबाग जैन मंदिर की सुजाता शाह, वरिष्ठ उद्योगपति प्रकाश धारीवाल, जितो के अचल जैन, उद्योगपति अरविंद जैन, उद्योगपति जमनालाल हेपावत (मुंबई), वरिष्ठ कांग्रेस नेता अभय छाजेड़, सुरेंद्र गांधी, जितेंद्र शाह, विनोद जैन, अजित पाटील, महावीर शाह, वीरकुमार शाह सहित जैन बांधव बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
इस बीच, राजारामपूल से माणिक बाग, सिंहगढ़ रोड से श्री महावीर दिगंबर जैन मंदिर तक नमस्कार दौर का आयोजन किया गया। शोभा यात्रा में आचार्य श्री विशुद्धसागरजी मुनिराज एवं उनके शिष्यों का जगह-जगह पुष्पवर्षा कर स्वागत किया गयां महिलाएं सिर पर कलश और हाथों में ध्वज लेकर जुलूस में शामिल हुईं।
माणिक बाग स्थित श्री महावीर दिगंबर जैन मंदिर में चर्याशिरोमणि प. पू. १०८ आचार्य श्री विशुद्धसागरजी मुनिमहाराज का विभिन्न संस्थाओं एवं पदाधिकारियों द्वारा पंचामृत अभिषेक और नारियल देकर सम्मानित किया गया। इस अवरसर पर आचार्य विशुद्ध सागर महाराज ने कहा कि आडंबर से हमेशा बचना चाहिए।
निर्भय रहना दुनिया की सबसे बड़ी साधना है। संतों से विमुख न हो और दिखावे की ओर न बढ़ो। जहां इंद्रियां मन का प्रवेश नहीं करतीं, वहां जीव ज्ञान से अनुभव करता है। अपने आहार में शुद्ध शाकाहारी भोजन, शुद्ध पानी रखें।
विचारों को शुद्ध रखें। श्री भगवान महावीर की ‘जियो और जीने दो’ विचार तालिका का अनुसरण करें। पानशेत के ओसाडे गांव में जैन मंदिरों की स्थापना होने जा रही है। चर्याशिरोमणि प. ईसा पूर्व १०८ मंदिर का उद्घाटन आचार्य श्री विशुद्धसागरजी मुनिमहाराज और उनके शिष्य करेंगे। २० अप्रैल को वह पंचकल्याण प्रतिष्ठा महोत्सव के लिए कोल्हापुर जा रहे है।
गुरू-शिष्य मिलन – आनंदनगर माणिकबाग चौक में १०८ आचार्य कीर्तिसागरजी महाराज, मुनि श्री १०८ प्रणुतसागरजी महाराज और श्रमण मुनिश्री १०८ यत्न सागरजी महाराज विराजमान है। ये दोनो आचार्य श्री १०८ विशुद्धसागरजी महाराज के शिष्य है। आचार्यजी माणिकबाग चौक आते हि जल्लोषपूर्ण वातावरण में गुरू-शिष्य मिलन का कार्यक्रम संपन्न हुआ। इस वक्त ‘जय तारा गुरुदेव का… जय जय गुरुदेव’ नारों से परिसर मंगलमय हो गया।
१ लाख कि. मी. पैदल प्रवास – चर्या शिरोमणी प. पू. आचार्य १०८ श्री विशुद्धसागरजी महाराज और २८ पिच्छी (२८ दिगंबर मुनी) संघ के सानिध पुणे में पानशेत रोड पर ओसाडे गाव में श्री १००८ मुनी सुव्रतनाथ भगवान के नूतन मंदिर में पंचाकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव आयोजित किया है। पुणे के इतिहास में पहिली बार इतना बडा संघ का आशीर्वाद मिल रहा है। आचार्य विशुद्धसागर महाराजजी ने जीवन में १ लाख कि. मी. पैदल विहार किया है। १४३ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव, १२ राज्यों में विहार, ६१ दिक्षा प्रदाता है। उन्हों ने २०० से अधिक ग्रंथ की रचना की है। इंदौर से पैदल प्रवास करके वे नाशिक से पूना आये है। वाकड, सूस, एचएनडी में उनका निवास हुआ है।
