महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : मानव रूपी कमरे को फैशन-व्यसन के कचरे से नहीं, ज्ञान के प्रकाश से भरें ऐसा प्रतिपादन पं. राजरक्षितविजयजी ने किया।
उन्होने कहा, श्री मुनिसुव्रत जिनालय कोरेगांव में पंन्यास पं. राजरक्षितविजयजी ने कहा कि नगरशेठ ने उनसे अपने तीन बेटों को परीक्षा देने के लिए एक एक कमरा भरने के लिए 100 रुपये दिए। बड़े बेटे ने कमरे को गाँव के कूड़े-कचरे से भर दिया।
मंझले बेटे ने कमरे को पस्ती से भर दिया। छोटे बेटे ने पहला नंबर लाया, जिससे कमरा बांसुरी के संगीत, धूप की सुगंध और दीपक की रोशनी से भर दिया। कर्मराज ने हमें मानवभव का कमरा भरने का मौका दिया है।
मानवभव की प्राप्ति के लिए असंख्य देव तड़प रहे हैं। हमने वो इंसानियत बहुत आसानी से पा ली है। तो फैशन और व्यसन के कचरे से नहीं लेकिन आस्था के संगीत से, धार्मिकता की खुशबू से और ज्ञान के प्रकाश से हम मानव रूप को रोशन करेंगे।
भगवान के वचनो को विश्वास के साथ स्वीकार करना चाहिए। मत, ममत, ममता बिना के भगवान को झूठ बोलने का कोई कारण नहीं है। आपको डॉक्टरों, वकीलों, ड्राइवरों, नाईयों पर किस तरह का विश्वास है? ऐसा विश्वास भगवान के वचन पर क्यों नहीं आता? प्रभु महावीर स्वामीजी ने हमें योग साधना के माध्यम से वे सभी बातें बतायी हैं जिनका प्रयोग आज के वैज्ञानिक अनुसंधान केन्द्रों में कर रहे हैं।
पौधों में जीवन है जल की योनि वायु है। शब्द पुद्गल है। वैज्ञानिक आज प्रयोग करके कई ऐसी चीजें हासिल कर रहे हैं। जीवन में आचरण थोड़ा कम हो तो चलेगा लेकिन आस्था पूर्ण होनी चाहिए। एक अंक के बिना शुन्य की कोई मूल्य नहीं है। उसी प्रकार बिना आस्था के तप, जप और पूजा का कोई महत्व नहीं है। “सच्चा है वीतराग, सच्ची है वाणी आधार है, आज्ञा. बाकी धूलधानी” इस नारे को जीवन में उतारें।
