पं. राजरक्षितविजयजी का श्री शांतिनाथ जिनालय भोरमें व्याख्यान
महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : आज वैज्ञानिक भी परमेश्वर के वादों पर मोहर लगाते हैं। एक डॉक्टर की दवा मुझे अच्छा करेगी, एक ड्राइवर मुझे मुंबई ले जाएगा, एक वकील मुझे अच्छी सलाह देगा। हमें ईश्वर पर वैसे ही विश्वास रखना चाहिए जैसे डॉक्टर-ड्राइवर-वकील पर विश्वास है। इन शब्दोमे पंन्यास राजरक्षितविजयजी ने परमेश्वर पे विश्वास का महत्त्व जताया।
श्री शांतिनाथ जिनालय भोर जैनसंध में पंन्यास राजरक्षितविजयजी ने कहा कि इकाई के बिना शून्य का कोई मूल्य नहीं है, जैसे आस्था के बिना धर्म का कोई मूल्य नहीं है। आस्था का अर्थ है सम्यग्दर्शन। अधूरा दर्शन नहीं, पूर्ण दर्शन है।
अधूरा दर्शन राग जगाता है, पूर्ण दर्शन द्वेष जगाता है। पुरुष महिला और महिला पुरुष का बाहरी शरीर-सुंदर चेहरा सुंदर रूप से आकर्षित होता है। क्योंकि यह अधूरा विज़न है। शरीर में मल-मूत्र-मल-बलगम-रक्त हड्डी- वसा आदि अशुद्धियों को देखेंगे तो वैराग्य उत्पन्न होगा।
यदि हमारी आंखों में कैमरा लेंस होगा तो शरीर का बाहरी स्वरूप दिखाई देगा। लेकिन यदि एक्स-रे लेंस हो तो त्वचा के अंदर की हड्डी- मल- मूत्र आदि दिखाई देंगे।प्रभु से प्रेम करो, लेकिन प्रभु के वचनो से भी प्रेम करो, है ना? यदि भगवान में विश्वास करने वाले भगवान के वचनो पर विश्वास नहीं करते तो केसे चले? मत-ममत-ममता बिना के प्रभु कभी झूठ नहीं बोलते।
झूठ बोलने के तीन कारण – राग – द्वेष- अज्ञान भगवान ने समाप्त कर दिए हैं। आज वैज्ञानिक भी परमेश्वर के वादों पर मोहर लगाते हैं। एक डॉक्टर की दवा मुझे अच्छा करेगी, एक ड्राइवर मुझे मुंबई ले जाएगा, एक वकील मुझे अच्छी सलाह देगा।
हमें ईश्वर पर वैसे ही विश्वास रखना चाहिए जैसे डॉक्टर- ड्राइवर- वकील पर विश्वास है। श्रद्धापूर्वक की गई प्रार्थना से भक्त की मनोकामना पूरी होती है। शबरी की इच्छा थी कि राम आएंगे, मीरा को विश्वास था कि विष का प्याला अमृत बन जाएगा, चंदना को विश्वास था कि भगवान महावीर आएंगे। ईश्वर पदार्थ का नहीं, प्रार्थना के भूखे है। श्रद्धापूर्वक की प्रार्थना आज भी चमत्कार कर सकती है।
