महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : परिवार में माता-पिता ही सबसे बड़े उपकारी हैं। जिस माँ ने बचपन में गोद लीया और जिस पिता ने कंधा दिया उनका बुढापे में तिरस्कार नहीं करना चाहिए। इस तरह के विचार पंन्यास राजरक्षितविजयजी ने रखे।
श्री आदिनाथ सोसायटी जैन संघ पूना में युगप्रधान आचार्य सम पंन्यास प्रवर श्री चन्द्रशेखरविजयजी म. सा. के शिष्य पंन्यास राजरक्षितविजयजी, पंन्यास नयरक्षितविजयजी ने 15 से 50 वर्ष के युवाओं के लिए रविवार को आयोजित विशेष शिविर में मार्गदर्शन किया।
“मेक माय ट्रिप टु हेल और हेवन” विषय पर विशालसभा में बताया की आज का, आदमी एक सुंदर घर बना सकता है। इसमें कोनसा फर्नीचर होना चाहिए वो समझ मे आता है लेकिन घर में कैसे रहेना? केसे जिना वो नही आता है। इमारत केवल ईंट, सीमेंट, रेत या पत्थर से बनी होती है।
लेकिन अगर घर बनाना हो तो घर के हर सदस्य को सहनशक्ति और समझशक्ति खूब बढ़ानी होगी। युवा प्रवचनकार पं. नयरक्षितविजयजी ने कहा कि, घर में नरक जैसा माहौल बनाओगे तो नरक में जाना पड़ेगा। घर में स्वर्ग जैसा माहौल बनायेंगे तो स्वर्ग में जायेंगे।
स्वर्गीय वातावरण बनाने के लिए, घर के प्रत्येक सदस्य को एक-दूसरे के प्रति सद्भाव होना चाहिए, सहनशक्ति बढ़ानी, सत्संग करना चाहिए। यदि मशीन में तेल नहीं होगा तो चर-चर की आवाज आएगी। जब जीवन से स्नेह गायब हो जाता है तो कच कच शुरू हो जाती है।
परिवार में माता-पिता ही सबसे बड़े उपकारी हैं। माँ ने दिया गोद, पिता ने दिया कंधा उस माँ को बुढ़ापे में कष्ट देने का पाप कभी मत करना। याद रखें, जिन्होंने बचपन में आपका पालन पोषण किया, यदि आप बुढ़ापे में उनका हैया जलाया तो आपका भाग्य पलायन हो जाएगा। श्री आदिनाथ सो. जैन संघ का विशाल मंडप में आयोजित शिबिर में 1400 से 1500 भाई-बहन उपस्थित थे।
