महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : श्रीसंभवनाथ जिनालय गुलटेकडी जैनसंध पुणे में भगवान महावीर सप्ताह के दौरान सैकड़ों भाई-बहन भगवान महावीर स्वामीजी के जीवन चरित्र का श्रवण कर निहाल हो रहे हैं। वर्धमान कुमार की विनम्रता, वैराग्य, निष्पक्षता, करुणा, गंभीरता आदि गुणों की झलक पाकर श्रोता उन गुणों को जीवन में उतारने का प्रयास कर रहे हैं।
भरचक सभा में पं. राजरक्षितविजयजी ने कहा कि प्रभु महावीर स्वामीजी साधनाकाल में सिंह के समान शुरवीर और खरगोश के समान सतर्क थे। वह जीवों प्रति दयालु, जात प्रति कठोर और उपकारी प्रति कृतज्ञ थे।
वर्धमान कुमार ने दीक्षा ली और सभी प्राणियों को अभयदान दिया। मेरे कारण किसी भी प्राणी को कष्ट न हो इसका सदैव ध्यान रखते थे। साधना काल में भारण्ड पक्षी के समान अप्रमत्तता, सिंह के समान पराक्रम, कमल के समान निर्लेपता, वृषभ के समान ताकत, वायु के समान अप्रतिबद्धता, पृथ्वी के समान सहनशक्ति, मक्खन के समान कोमलता, समुद्र के समान गंभीरता थी।
साधना काल से यही संदेश दिया कि जात प्रति कठोर बनो, जीवो के प्रति कोमल रहो और उपकारों के प्रति कृतज्ञ रहो। माता-पिता का हम पर सबसे बड़ा उपकार है। गर्भपात के युग में और चिडीयाघर के कलीकाल में जिन्होंने जन्म दिया जीवन दिया और जीवन जीने का प्रशिक्षण दिया।
उन माता-पिता की कभी उपेक्षा न करें पत्नी पसंद से मिलती है। माता-पिता पुण्य से मिलते हैं। मंदिर के भगवान राम, श्रीकृष्ण, महावीर हैं लेकिन घर के भगवान-भगवती माता-पिता हैं। माता-पिता की उपेक्षा करके मंदिर में पूजा करनेवाला भक्त उतना ही मूर्ख है जितना कि अपने निर्वस्त्र शरीर पर आभूषण पहनने वाला।
जब वर्धमान कुमार गर्भ में थे, तब त्रिशला को कष्ट न हो, इसलिए स्थिर हो गए। जिस मां ने हमें गोद दिया और जिस पिता ने हमें कंधा दिया उन उपकारी पर अत्याचार क्यों किया जा सकता है?
