उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना — पुष्प नववां
महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : जो व्यक्ति किसी चीज़ की खोज करता है, उसे वह अवश्य मिलती है; पर जो केवल माँगता ही रहता है, उसे कुछ भी प्राप्त नहीं होता। इसलिए सत्य की खोज करना और उसे जानना अत्यंत आवश्यक है। क्योंकि जिसे जीवन, समाज और व्यवहार के सत्य का ज्ञान होता है, उसके मन में स्पष्टता रहती है – उसे कोई भी न तो धोखा दे सकता है, न ही भटका सकता है।
आज स्वयं से एक छोटा-सा प्रश्न पूछिए – क्या हमें सुख की खोज करनी है या दुःख का अंत करना है? उत्तर निश्चित रूप से यही मिलेगा – दुःख का अंत करना है। कई बार जीवन में सुख की झलक तो आती है, पर हम दुःख में इतने डूबे रहते हैं कि वह सुख हमें महसूस ही नहीं होता।
इसलिए पहले दुःख से बाहर निकलने के उपाय खोजने आवश्यक हैं। जैसे अगर किसी को बुखार आया हो और वह केवल टॉनिक लेता रहे, तो क्या उसका रोग समाप्त होगा? नहीं। वैसे ही केवल बाहरी उपायों से दुःख नहीं मिटता – उसका मूल कारण समाप्त करना आवश्यक है।
जो लोग दुःख को समाप्त किए बिना केवल सुख की खोज में लगे रहते हैं, उनकी स्थिति वैसी ही है जैसे गटर के पानी पर इत्र छिड़कना – बाहर से खुशबू, पर अंदर वही गंदगी! जैसे बीता हुआ समय या रात कभी लौटकर नहीं आती, वैसे ही जो व्यक्ति अंधकार (अज्ञान) में धर्म का अभ्यास करता है, उसे दिन के उजाले (ज्ञान) में धर्म करने की आवश्यकता नहीं रहती।
यह अंधकार न तो पीड़ा है, न प्रतिकूलता – बल्कि यह प्रमाद, आलस्य और भ्रम का साम्राज्य है। जो व्यक्ति इस भ्रम से ऊपर उठकर सत्य तक पहुँचता है, उसकी “रात” भी उजली हो जाती है।
कभी-कभी हमें लगता है कि सामने वाले व्यक्ति ने हमारे प्रति वैरभाव रख लिया है, लेकिन क्या हमने यह सोचा है कि यह वैरभाव व्यक्ति से है या हमारे अहंकार, संपत्ति, अधिकार जैसी चीज़ों से उत्पन्न हुआ है?
इसलिए जो दिखता है, वही पूरा सत्य नहीं होता – उसके पीछे छिपे सत्य को भी देखना आवश्यक है। दूसरों के जीवन को देखकर टिप्पणी करने से बेहतर है कि हम स्वयं में झाँकें – क्या ईश्वर की वाणी से हम अपने भीतर के अभावों को दूर कर रहे हैं?
जो धर्म को समझकर साधना-पथ पर चलता है, वह सीधा और सरल होता है। उसे फल की अपेक्षा नहीं होती, बल्कि केवल ज्ञान की प्यास होती है। वह बार-बार वही बातें दोहराने के बजाय नये मार्गों की खोज करता है।
उसे अनजाने रास्ते आकर्षित करते हैं, वह अनुसंधान में रत रहता है। इसलिए आवश्यक है कि हम अपने जीवन का आत्ममंथन करें – क्या हम रोज़ वही क्रियाएँ दोहराते जा रहे हैं, या कुछ नया सीखने, कुछ नया करने का प्रयास कर रहे हैं?
जैसे ही हम इस प्रश्न का उत्तर सच्चाई से खोजेंगे, वैसे ही हमें यह स्पष्ट हो जाएगा कि हमारा जीवन किस दिशा में जा रहा है – दुःख की ओर, या उसके अंत की ओर।
