महाराष्ट्र न्यूज नेटवर्क : अभिजित डुंगरवाल
पुणे : प्रेम का दायरा पुरे संसार तक फैलाना है लेकिन शुरुआत घर से करनी होगी ऐसा प्रतिपादन पंन्यास राजरक्षितविजयजी ने किया।
श्री कुंथुनाथ जिनालय सुभाषनगर जैनसंध पुणे मे राजरक्षितविजयजी ने मार्गदर्शन किया।
उन्होने कहा, यदि धन और प्रेम को महत्व देना है तो धन को नहीं प्रेम को महत्व दो। प्रेम परलोक में साथ आता है, लेकिन पैसा यहीं रह जाता है। पैसों ने भाई-भाई में दुश्मनी पैदा कर दी है। पिता-पुत्र के बीच खून खराबा करवाते है, जबकि प्यार बाघ और शेर को भी रिश्तेदार बना सकता है। प्यार का दायरा दुनिया तक फैलाना है लेकिन इसकी शुरुआत घर से करनी है। माता-पिता की पूजा करनी चाहिए, पत्नी को प्रेम (स्नेह) देना चाहिए, बच्चों को भी प्रेम(वात्सल्य) देना चाहिए, नौकरों का आदार सम्मान करना चाहिए।
माता-पिता घर के भगवान-भगवती हैं। माता-पिता की उपेक्षा करके कितना भी उच्च धर्म का आचरण किया जाए, वह फलदायी नहीं होता। श्री राम ने अपने पिता दशरथ के लिए अयोध्या का सिंहासन त्याग दिया। माता-पिता की सेवा करने से अड़सठ तीर्थों का फल प्राप्त होता है। जीवन में आगे बढ़ने के लिए दोष दृष्टी को छोड़कर गुणों की दृष्टी को विकसित करना चाहिए। मानसरोवर में मोती और मछली दोनों हैं। हंस मोती खाते हैं। जब बगुला मछली खाता है। हमारा नंबर हंस बनने और सद्गुण दृष्टि विकसित करने का होना चाहिए नाकी बगुला बनकर दोष धुंढना। श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को सज्जन पुरुष ढूंढने को कहा और अर्जुन को दुष्ट पुरुष ढूंढ़ने को, लेकिन दोषपूर्ण दुर्योधन को एक भी सज्जन पुरुष नहीं मिला। अच्छी दृष्टि वाले अर्जुन को एक भी बुरा व्यक्ति नहीं मिला। संक्षेप में जैसी दृष्टि वैसी सृष्टी के रूप में सामने आती है।
पं. नयरक्षितविजयजी के रात्रि प्रवचन में 250 युवा शामिल हुए। 17 जनवरी प्रातः 8:30 बजे व्याख्यान, रात्रि 9:00 बजे केवल पुरुषो के लिये व्याख्यान होगा।
