महाराष्ट्र न्युज नेटवर्क : अभिजित डुंगरवाल
पुणे : भव और परभव को सुधारने के लिए पापभीति और प्रभुप्रीती को मजबूत करना चाहिए ऐसा प्रतिपादन पं. राजरक्षितविजयजी ने किया।
श्री संभवनाथ जिनालय गुलटेकडी जैनसंध पुणे मे पं.राजरक्षितविजयजी ने कहा कि, कोई कीमती वस्तु खो जाए तो दुख होता है। लेकिन मानवभव के अनमोल वर्ष प्रमादी अवस्था में पूरे हो रहे हैं, क्या यह खेदजनक है? जैसे ही आप टैक्सी में बैठते हैं, किराया का मीटर शुरू हो जाता है। चाहे गाड़ी खड़ी हो या चलती हो, मीटर तेज गति से चलता रहता है। ठीक वैसे ही, जब से हम माँ के गर्भ में से आये, जीवन का आयुष्य का बैलेंस प्रति समय कम होता जाता है। अंजली मे रहा हुआ पानी टप..टप..के बाद क्षण भर में जल लुप्त हो जाता है वैसे वैसे आयुष्य कर्म के क्षण वार मे नाश हो जाते हैं ओर आत्मा परलोक की ओर बढ़ती जाती है। मृत्यु को रोका नहीं जा सकता लेकिन मृत्यु को सुधारना हमारे हाथ में है। धर को इंजीनियर की योजना के अनुसार बनाया जाता है। दर्जी के कटते ही पोशाक तैयार हो जाती है। हम जिस प्रकार रहते हैं उसी के अनुसार हमें अच्छीगती या बुरीगती मिलती है। केसर की खेती करने वाले को सुगंध मिलती है, प्याज की खेती करने वाले को दुर्गंध मिलती है। समाधि मृत्यु को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को समाधिपूर्ण जीवन जीना पड़ता है। गति बदलने से पहले अगर आपने रवैया बदल लिया तो आपको अच्छा फल मिलेगा।पापमती सुधारने के लिये पाप को पाप के रूप में स्वीकार करो। पापों से घृणा करो।किए गए पापों का गीतार्थ ज्ञानी सद्गुरु के पास स्वीकारोक्ति करो। यह भव और परभव को सुधारने के लिए पापभीति और प्रभुप्रीती को मजबूत करनी चाहिए। जीवन में ऐसा धर्म अपनाना चाहिए जो परलोक में साथ दे। कुमारपाल की आरती, पुनिया की सामायिक, सुलसा की श्रद्धा, नागकेतु का अठ्ठम, कोणिक का सामइयां, श्रेणिक राजा की वीरभक्ति, मीरां की प्रभु प्रेम, शबरी की राम भक्ति विश्व प्रसिद्ध हैं।
