महाराष्ट्र न्युज नेटवर्क : अभिजित डुंगरवाल
पुणे : भगवान हमें दर्शन देते हें । सद्गुरु हमें मार्गदर्शन देते हे ऐसा प्रतिपादन पं.नयरक्षित विजयजी ने किया।
भगवान के क्रोधित होने पर गुरु की गोद ही भक्त को बचाने में सक्षम है। लेकिन जब गुरु नाराज हो जाएं तो दुनिया का कोई भी व्यक्ति भक्त को नहीं बचा सकता। सद्गुणों के रचयिता के रूप में गुरु ब्रह्मा हैं। अच्छाई के संरक्षक होने के नाते, गुरु विष्णु हैं। गुरु विकारों का नाश करने वाला होने के कारण महेश है। पंन्यास राजरक्षितविजयजी ने श्री शांतिनाथ जिनालय भोर में प्रभुमिलन-गुरुमिलन के अवसर पर खचाखच भरी सभा में कहा कि सद्गुरु ही हमें असत्य के अंधकार से सत्य के प्रकाश की ओर ले जाते हैं। गुरु के प्रति समर्पित शिष्य को आलोक में समाधि और परलोक में सद्गति प्राप्त होती है। सद्गुरु जिसका हाथ पकड़ेगा, प्रभु की दृष्टि उसी पर पड़ेगी। सद्गुरु वह व्यक्ति है जो ईश्वर और धर्म का परिचय कराता है। अतः उनकी महिमा अपरंपार है। आ.देव श्री प्रेमसूरीश्वर महाराज, आ.देव श्री भुवनभानुसूरिजी, आ.देव श्री जयघोषसूरिजी, आ.देव श्री गच्छाधिपति राजेंद्रसूरिजी, युगप्रधान आचार्य सम पंन्यास प्रवर चन्द्रशेखर विजयजी आदि की उज्ज्वल परंपरा की गौरवशाली विरासत मिली है। पं.नयरक्षितविजयजी ने कहा कि प्रभु दर्शन देते हैं, सद्गुरु मार्गदर्शन देते हैं। कई योग मोक्ष की ओर ले जाने वाले बताए गए हैं। परन्तु हमारे लिये निर्धारित मार्ग सद्गुरु नक्की करते हें । शिष्य बने बिना मुक्ति संभव नहीं है। जो अपना मन सद्गुरु को समर्पित कर देता है वही सच्चा शिष्य कहलाता है। 14 फरवरी को श्री शांतिनाथ जिनालय की 18 वीं वर्षगांठ के अवसर पर सुबह 9 बजे अठारह अभिषेक व सत्तरभेदी पूजा के बाद जिन मंदिर का ध्वजारोहण होगा।
