महाराष्ट्र जैन वार्ता : अभिजित डुंगरवाल
पुणे : माता-पिता की ईश्वर के समान सेवा करने से आयु-विद्या-यश एवं बल की वृद्धि होती है ऐसा प्रतिपादन पं. राजरक्षितविजयजी ने किया।
उन्होने कहा पारसमणि के सत्संग से लोहा सोना बन जाता है। उसी प्रकार संत के सत्संग से पापी भी परमात्मा बन जाता है। सत्संग जीवन विकास का आधार है।
कुसंग ही जीवन विनाश का आधार है। कुसंग कभी मत करो, सत्संग कभी मत छोड़ो। सतारा आईटीआई श्री कुंथुनाथ जिनालय में पंन्यास राजरक्षितविजयजी ने कहा कि अहिंसा-संयम और तप रूपी धर्म करने वाले को देवता भी नमस्कार करते हैं।
आचार्य स्वयंभावसूरिजी महाराज ने श्री दशा वैकालिक सूत्र में धर्म का प्रभाव दर्शाया है। तप अहिंसा का पालन करता है। और पांचों इंद्रियां संयमित हो जाती हैं।
वरसीतप से अभक्ष्य, अपेय, सचित्त आदि का त्याग आसानी से हो जाता है। छोटा लेकिन शुद्ध धर्म बड़े-बड़े खतरों से बचाता है। थोड़ा सा सर्फ भी कपड़ों को चमका देता है। थोड़ा-सा धर्म भी आत्मा को उज्ज्वल कर देता है।
बाल संस्करण शिविर में पंन्यास राजरक्षितविजयने कहा कि मंदिर के भगवान राम-श्रीकृष्ण और महावीर स्वामीजी हैं। लेकिन घर के भगवान- भगवती माता-पिता हैं।
माता-पिता की ईश्वर के समान सेवा करने से आयु-विद्या-यश और बल में वृद्धि होती है। सुबह उठकर सबसे पहले माता को प्रणाम करें फिर पिता को प्रणाम करें। माता-पिता की पूजा करने से अडसठ तीरथों का फल मिलता है।
जो माता-पिता की आह (हाय) लेता है वह कभी सुखी नहीं रहता। जिस माता-पिता ने हमें जन्म दिया, हमें जीवन दिया, हमें संस्कार दिये, उन्हें कभी वृद्धाश्रम में मत डालो।