महाराष्ट्र न्यूज नेटवर्क : अभिजित डुंगरवाल
पुणे : जो मनुष्य अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रख सकता है, वह मनुष्य सदैव सुखी रह सकता है ऐसा प्रतिपादन पं. राजरक्षितविजयजी ने किया।
श्री किणी जैन समाज को पंन्यास राजरक्षितविजयजी ने कहा कि व्यापारी का लक्ष्य टन ओवर में नहीं बल्कि मुनाफा में है। अत: साधक का लक्ष्य केवल कर्म कांड में नहीं, बल्कि गुण प्राप्ति में है। धर्म का फल समता है। कोई भी पंथ, संप्रदाय, गच्छ को माननेवाला मुमुक्षु समता लाए बिना मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता। हमारा विनाशक हमारे बुरे कर्म हैं। दूसरा व्यक्ति तो मात्र एक निमित्त मात्र है।
ऐसा चिंतन बार-बार करने से समता प्राप्त होती है। खन्धक मुनि ने खाल उतारने वाले जल्लाद के साथ भाई जैसा व्यवहार किया। महाराजा श्रेणीक अपने पुत्र कोणीक के प्रति स्नेह दिखाते थे जो प्रतिदिन 100 हंटरको मार मारता था। गजसुकुमाल मुनि ने अपने ससुर सौमिल को समता प्रदान की, जिन्होंने उनके सिर में आग लगा दी थी।
संसार सागर में तैरने के लिए समता सर्वोत्तम नाव है। जिस प्रकार आकाश का कोई अंत नहीं, उसी प्रकार इच्छाओं का भी कोई अंत नहीं है। टीवी पर आने वाले विभिन्न कंपनियों के अनगिनत विज्ञापन इच्छा बढ़ाने में पेट्रोल का काम करते हैं। बच्चे भी अपने माता-पिता से नई-नई वस्तुओं की मांग करते हैं। ऐसे में मध्यम वर्ग के लोग पिस रहे हैं।
अगर किसी को ऐसी कठिन परिस्थिति से बाहर निकलकर सुख का आनंद लेना है तो इंसान को अपनी चाहत पर ब्रेक लगाना ही होगा। सादा जीवन उच्च विचार के नारे को आत्मसात करना होगा। जो व्यक्ति अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रख सकता है, यानी जीवन की जरूरतों को पूरा कर सकता है, वह हमेशा स्वस्थ और खुश रह सकता है।
सादा जीवन उच्च विचार के साथ आत्म विकास के नये क्षितिज तक पहुंचा जा सकता है।
