महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : जंगल की आग पर काबू पाया जा सकता है। परंतु मन की आग को बुझाना अत्यंत कठिन है। जीवन में खुशियाँ लाने के लिए आपको हवाफेर की जरूरत नहीं है। लेकिन मनफेर (बदलाव) की जरूरत है। जीवन में खुशियाँ लाने के लिए मनफेर करने की जरूरत का विश्वास पं.राजरक्षितविजयजी ने व्यक्त किया।
पंन्यास राजरक्षितविजयजी, पंन्यास नयरक्षितविजयजी की पावन निश्रा में श्री मुनिसुव्रत स्वामी जिनालय कोरेगांव में “खुशी की मास्टर कुंजी” विषय पर सार्वजनिक व्याख्यान हुआ। जिसमें बड़ी संख्या में भाई-बहन उपस्थित रहे।
पं. राजरक्षितविजयजी ने कहा कि घर और दफ्तर सेंट्रल एसी से युक्त हैं, लेकिन हाथ में जलती हुई मशाल हो तो ठंडक का अहसास नहीं होता। आधुनिक सामग्रियों के भी ढेर हैं। लेकिन यदि मन भ्रमित हो तो सुख की अनुभूति नहीं होती। कवि ने कहा है कि, घर जलेगा तो दूसरा होगा, जंगल जलेगा तो बुझा सकेंगे।
लेकिन जब मन जलता है तो सातों समुद्र भी सूख जाते हैं। घर में लगी आग को बुझाया जा सकता है। जंगल की आग पर काबू पाया जा सकता है। परंतु मन की आग को बुझाना अत्यंत कठिन है। जीवन में खुशियाँ लाने के लिए आपको हवाफेर की जरूरत नहीं है। लेकिन मनफेर (बदलाव) की जरूरत है, हम दुखी क्यों हैं।
इसमें अभावजन्य की मानसिकता एक बड़ी भूमिका निभाती है। हम दुखी हैं इसका कारण यह नहीं है कि हमारे पास कम है, बल्कि इसलिए है कि हम कम महसूस करते हैं। जड वस्तुओं को महत्व दिया गया। जीव की उपेक्षा की गई है। खुश रहने के लिए व्यक्ति को जीव के प्रति वात्सल्य और जड वस्तुओं के प्रति वैराग्य पैदा करना चाहिए। जीवन का चरम स्वरूप शिव (ईश्वर) है।
जड़ का अंतिम स्वरूप नाशवान होता है। जड़ पदार्थ के संरक्षण में जीव तत्व की कभी भी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। पं. नयरक्षितविजयजी ने कहा कि खुशी की मुख्य कुंजी सकारात्मक सोच शैली और आध्यात्मिक जीवन शैली में निहित है। अरबपति मम्मन बहुत दुखी थे क्योंकि उनको संपत्ति कम लगती।
चक्रवर्ती राजा से भी अधिक प्रसन्न थे कुटिया में रहने वाला धर्मनिष्ठ पुणियाश्रावक संतुष्ट था। इसलिए लिए चक्रवर्ती राजा से भी अधिक प्रसन्न थे। यदि आप अपने मन का ध्यान सकारात्मक रखेंगे तो दिवाली होगी और यदि आप मन नकारात्मक रखेंगे तो यह हमेशा होली होगी।
