कल्याण सोसायटी जैनसंघ में हर्षोल्लास से चातुर्मास प्रवेश
महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : पं. राजरक्षितविजयजी ने विशाल जनसमूह से कहा कि, जीवन रूपी रथ को प्रगति की ओर ले जाने के लिए नियमित रूप से सत्संग करना चाहिए। जब ययाति का उपभोक्तावाद घर-परिवार में आतंक मचा रहा हो, युवाओं में नास्तिकता, निर्माल्यता, निष्क्रियता घर कर गई हो तो सद् गुरु का सत्संग जरूरी है।
पंन्यास राजरक्षितविजयजी आदि कि पावन निश्रामें आचार्य केसरसूरि समुदाय की साध्वी श्री दर्शनप्रभाश्रीजी म. सा. की शिष्या साध्वीश्री अचिंत्यप्रभाश्रीजी म. सा. आदिका कल्याण सोसायटी जैनसंघ में चातुर्मास प्रवेश हर्षोल्लास से मनाया गया। विशेष रंगोली, अष्टमंगल और मंगलकलशो के साथ तीन प्रदक्षिणा देकर स्वागत किया गया।
पं. राजरक्षितविजयजी ने कहा में जीवन मे नास्तिकता, निर्माल्यता, निष्क्रियता घर कर गई हो तो सद् गुरु का सत्संग जरूरी है। सत्संग पारसमणि है। जो पापियों को परमात्मा बना देता है।
प्रभुवीर के सत्संग से क्रोधित, हिंसक, चंडकौशिक नाग शांत हो गया। अंगुलिमाल गौतमबुद्ध का सत्संग करने से संत बन गया। नारदमुनि के सत्संग से वालिया डाकू ऋषि वाल्मिकी बन गये।
चातुर्मास धर्म करने के लिए एक उत्कृष्ट मौसम है। चार मास तक गुरु भगवंत एक ही स्थान पर रहते हैं। किसी ग्रंथ पर प्रवचन होता है। आसमान से पानी बरसता है।
सद् गुरु के मुख से जिनवाणी बरसती है।
पानी शरीर की अशुची बाहर निकालती है। लेकिन जिनवाणी मन की उलझनों और आत्मा के दोषों को दूर कर देती है। चातुर्मास की आराधना आत्मा को तप, त्याग, तितिक्षा से अलंकृत करने का अवसर है।
