महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : हम जो शब्द बोलते हैं, वे किसी का भविष्य उज्ज्वल बना सकते हैं या उसके जीवन में अंधकार भी ला सकते हैं, इसलिए बोलने से पहले विचार करना आवश्यक है। शब्द किसी शस्त्र के समान होते हैं। इनसे किसी का जीवन संवारा जा सकता है, तो किसी का जीवन बिगाड़ा भी जा सकता है। सूखे हुए मन पर या किसी के दुःख पर अपने शब्दों से मरहम रखकर उसका जीवन भी सवारा जा सकता है। ऐसा प्रतिपादन प. पू. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने किया। वे परिवर्तन चातुर्मास 2025 के अंतर्गत आयोजित प्रवचन माला में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा, “मनुष्य जीवन को सबसे बड़ा वरदान मिला है शब्द, और उन्हीं शब्दों से निर्मित भाषा। भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं है, बल्कि विचारों के आदान-प्रदान का साधन है। हमारे शब्द और भाषा, हमने जो सुना और पढ़ा है, उस ज्ञान से निर्मित होते हैं। इसलिए केवल वाणी या बोलना पर्याप्त नहीं है, उसके लिए ‘सुनने वाला कान’ यानी तैयारी का मन भी होना चाहिए।”
उन्होंने आगे कहा, “श्रुतज्ञान यानी सुनकर प्राप्त किया गया ज्ञान, यह हमारी श्रवण-भक्ति का प्रतीक है और इसका स्तर उत्कृष्ट होना चाहिए। हम क्या सुनते हैं और उस अनुसार हम अपने जीवन में क्या अमल में लाते हैं।
इसी पर हमारा व्यक्तित्व और पहचान निर्मित होती है। इसलिए हमें अपने आप का थोड़ा परीक्षण करना चाहिए कि हम दिनभर किस प्रकार से बोलते हैं। हमारे शब्द हमारी अंतरात्मा का प्रतिबिंब होते हैं। हमारे विचार जैसे होते हैं, वैसे ही शब्द हमारी वाणी में प्रकट होते हैं।”
“हमारे भीतर जो विचार, भावनाएँ और शब्द उत्पन्न होते हैं, वही हमारी भाषा को आकार देते हैं। यह भाषा, जो हमें वरदान के रूप में मिली है, यदि सही ढंग से न बरती जाए तो यह एक शाप भी बन सकती है।”
पू. पू. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने कहा, “शब्द और भाषा केवल शब्द नहीं होते, वे एक ऊर्जा होते हैं। ये किसी के आत्मविश्वास को बढ़ा सकते हैं, किसी को प्रेरणा दे सकते हैं। लेकिन यही शब्द अगर गलत दिशा में बोले जाएँ तो वे किसी को गुमराह भी कर सकते हैं। मन के भटके हुए विचारों को सही मार्ग पर लाने के लिए भी शब्दों की आवश्यकता होती है।”
“कोई भी व्यक्ति जन्म से बुरा नहीं होता, वह अपने आसपास के वातावरण के अनुसार गढ़ा जाता है। कोई बात सत्य हो, इसका यह अर्थ नहीं कि सामने वाला उसे तुरंत स्वीकार कर ही लेगा। आपने वह बात किस प्रकार कही, किस शैली में प्रस्तुत की, इसी पर उसकी मानसिकता और प्रतिक्रिया निर्भर करती है।
इसलिए हमारे मुख से निकलने वाले शब्दों से किसी के मन को चोट न पहुँचे, इसका ध्यान हमें अवश्य रखना चाहिए। जिससे किसी को हमारी वजह से दुःख, पीड़ा या पराजय का सामना न करना पड़े। क्योंकि जैसा हम दूसरों के लिए बोते हैं, वैसा ही हमारे पास लौटकर भी आता है।” “भाषा से जीवन में अंधकार फैल सकता है, लेकिन वही भाषा जीवन में प्रकाश भी ला सकती है।”
