महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : उन्होंने कहा कि वास्तव में धर्म हमेशा अखंड बहते पानी के समान होता है। धर्म निरंतर होना चाहिए। उसे अपनी सुविधा या समय के अनुसार करने का कोई उपयोग नहीं। धर्म को अपनी प्रत्येक क्रिया और आचरण से व्यक्त होना चाहिए।
प. पु. प्रवीण ऋषिजी म. सा. ने कहा – जिसे धर्म का सच्चा ज्ञान है वही धर्मज्ञ होता है, और जिसे सब कुछ ज्ञात है, पूर्ण ज्ञान प्राप्त है, वही सर्वज्ञ होता है। धर्मज्ञ को धर्म का पूरा ज्ञान होता है, लेकिन हर धर्मज्ञ सर्वज्ञ हो ही यह आवश्यक नहीं।
इसके विपरीत प्रत्येक सर्वज्ञ धर्मज्ञ अवश्य होता है। हमने सर्वज्ञ को केवल धर्म तक सीमित कर दिया है। जिस प्रकार शरीर में रक्त प्रत्येक धमनी तक फैलता है, उसी तरह धर्म भी हमारी नस–नस में प्रवाहित होना चाहिए।
कोई भी कार्य करते समय फल की या परिणाम की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। जो क्रिया हम कर रहे हैं उसे बीच में छोड़ने के बजाय उसमें निरंतरता बनाए रखनी चाहिए। “जो रुक गया वही समाप्त हो गया” इस उक्ति के अनुसार, किसी भी कार्य में कितनी भी बाधाएँ आएँ, हमें उसे आगे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।
किसी भी क्रिया में श्रद्धा और विश्वास का समावेश होना आवश्यक है। अर्थात धर्म करते समय उसके चारों ओर श्रद्धा का वातावरण बनाना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि जैसा वातावरण हमारे आसपास होगा, वैसा ही हमारा व्यक्तित्व बनेगा।
व्यक्तित्व निर्माण में वातावरण की बड़ी भूमिका होती है। कठिन परिस्थिति आने पर हार मानने के बजाय उससे निकलने का रास्ता खोजना आवश्यक है। कठिनाइयों के बिना विकास संभव नहीं। संकट के समय जो व्यक्ति समाधान खोज लेता है, वही वास्तव में अपनी बौद्धिक शक्ति का उपयोग करता है।
हार और असफलता को शत्रु मानकर उन पर विजय पाना ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि यही नियम परिवार पर भी लागू होता है। परिवार में कितनी भी कठिनाइयाँ या कलह आएँ, उनसे निकलने का मार्ग खोजना चाहिए।
जैसे धर्म करते समय हम श्रद्धा का वातावरण बनाते हैं, वैसे ही व्यक्तित्व निर्माण के लिए और परिवार को सुदृढ़ बनाने के लिए भी पोषक वातावरण ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि बच्चे हमारे व्यक्तित्व का आईना होते हैं।
इसलिए सबसे पहले हमें छोटे–बड़ों के साथ प्रेम, आदर और नम्रता से व्यवहार करना चाहिए। तब उसका प्रतिबिंब बच्चों के आचरण में दिखाई देगा। जितना अधिक हम अपने आस–पास पोषक वातावरण बनाएँगे, उतना ही वह हमारे परिवार और हमारे व्यक्तित्व निर्माण में सहायक सिद्ध होगा।
