महाराष्ट्र न्युज नेटवर्क : अभिजित डुंगरवाल
पुणे : श्री राजस्थानी जैन श्वे.मू संघ इचलकरंजी के तत्वावधान में पंन्यास राजरक्षितविजयजी, पंन्यास नयरक्षितविजयजी आदि साधु-साध्वीजी की पावन निश्रा में 118 तपस्वियों का पारणा ललवाणी परिवार द्वारा श्रेयांस कुमार के रूप में पंचरत्न सांस्कृतिक भवन में कराया गया।
पं. राजरक्षितविजयजी ने विशाल जनसमुदाय को बताया कि वर्षीतप की पारणा करने से पहले युगादि भगवान आदिनाथ प्रभु से दो चीजें मांगें (1) समता (2) माधुर्य। प्रभु प्रतिदिन भिक्षा माँगने के लिये फिरते थे।
लेकिन लाभान्तराय कर्म के उदय के कारण भगवान को भोजन नहीं मिल रहा था। यह सिलसिला 400-400 दिनों तक चला। फिर भी भगवानको किसी भी जीव के प्रति अप्रिती नहीं हुई।
जैसे ही वह भिक्षा के बिना लौटते तभी भगवान का चेहरा खुशी से भर जाता।
प्रभु! वर्षीतप के प्रभाव से हम में भी आपकी जैसी समता आनी चाहिए। दूसरी मांग है जीवन में माधुर्य आए… इक्षु को कोई छीलता है कोई टुकड़े-टुकड़े करे तो भी सबको माधुर्य देता हे। वैसे मेरा कोई अपमान करे या मेरी निंदा करे तो भी मे सबको माधुर्य देता रहु। यदि ये दोनों गुण जीवन में आ जाएं तो कहा जाता है कि वर्षीतप फलदायी हो गया।
पं.नयरक्षितविजयजी ने कहा कि, विश्व कल्याण की भावना से किया गया तप फलदायी होता है। जिनशासन में अनुशासन का बहुत महत्व है। इचलकरंजी राजस्थानी जैन श्वे.मू संघ में वर्षीतप की पारणा के अवसर पर दूर-दूर से दस हजार से अधिक भाई-बहन पहुंचे हैं। तपस्वियों ने पारणा करने से पहले सभी रिश्तेदारों को एक छोटा सा नियम देकर पारणा करने के लिए कहा। 12 मई को पूज्यश्री कुम्भोज गिरि तीर्थ पर पधारेंगे।
