महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे: कर्नाटक के अत्यंत रमणीय स्थल कुर्ग में दक्षिण के जिरावला पार्श्वनाथ धाम का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है। जिरावला तीर्थ की स्थापना परम पूज्य आचार्य श्रीमद् नयचंद्र सूरीश्वरजी महाराज साहिब के आशीर्वाद और अजीतचंद्रसागर महाराज साहिब के मार्गदर्शन में हो रही है, जिसमें कारीगर रात-दिन पाषाण को मूर्त रूप देने में लगे हैं। मंदिर का निर्माण कार्य 2025-26 तक पूरा होने की संभावना है।
सैलानियों के स्वर्ग, प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर कुर्ग, जो कॉफी और काली मिर्च की पैदावार के लिए प्रसिद्ध है, रिमझिम बरसात की फुहारों के बीच बसा हुआ है। इस रमणीय स्थल की वसुंधरा पर, दोनो ओर लंबे घने चिनार के वृक्षों से घिरे करीब चार एकड़ के विशाल भूखंड में जिरावला पार्श्वनाथ धाम का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है।
जैन संस्कृति, सभ्यता, और कला का बेजोड़ नमूना यह मंदिर, अपनी सूक्ष्म नक्काशी के कारण दिलवाड़ा, रणकपुर और बेलूर के मंदिरों की याद दिलाएगा। मैसूर-मडीकेरे राजमार्ग से कुशालनगर होते हुए, सुन्टीकोप्पा से केवल 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भविष्य के जिरावला तीर्थ की स्थापना परम पूज्य आचार्य श्रीमद् नयचंद्र सूरीश्वरजी महाराज साहिब के आशीर्वाद और अजीतचंद्रसागर महाराज साहिब के मार्गदर्शन में हो रही है। यहाँ कारीगर रात-दिन पाषाण को मूर्त रूप देने में लगे हैं।
प्रतिदिन जिरावला पार्श्वनाथ की प्रतिमा का कावेरी के निर्मल जल से पिच्छल किया जाता है। स्थानीय बगीचों के रंग-बिरंगे फूलों से परमात्मा की आंगी और अनुष्ठान क्रमबद्ध रूप से किए जाते हैं। सुरुचि भोजनशाला में प्रतिदिन देसी और पश्चिमी शैली के जैन व्यंजन परोसे जाते हैं।
राजस्थानी परिवेश में सेवा के लिए तत्पर महिला-पुरुष विशेष समवस्त्र में आकर्षक लगते हैं। पाश्चात्य शैली में रहने के लिए सुविधा-युक्त कमरे और विश्राम कक्ष भी उपलब्ध हैं। गर्भगृह में मूलनायक श्री जिरावला पार्श्वनाथ भगवान की 55 इंच ऊँची प्रतिमा स्थापित की जाएगी। विशाल रंगमंडप में दो खंभों पर लक्ष्मी और सरस्वती माताजी की 1008 मूर्तियाँ होंगी।
पद्मावती माता की 108 हाथ और 108 फणा वाली प्रतिमा काले बेसाल्ट पत्थर से बनी है। यह प्रतिमा पल्लू आर्ट, पाला आर्ट, और होयसल कला के मिश्रण से बनी है, जो विश्व की पहली प्राचीन शैली की प्रतिमा मानी जा रही है। यह प्रतिमा रूस से आयातित पत्थर से सोने के मिश्रण द्वारा बने गलीचे के साथ होगी।
मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार एक गुफा के माध्यम से होगा, जिसमें अजंता-एलोरा की प्रतिकृतियाँ और कर्नाटक की जीवन शैली की झलक दिखाई देगी। मंदिर के बाईं ओर श्रद्धालुओं के लिए विश्वस्तरीय सुविधाओं से युक्त 5 सितारा कॉटेज बनाए गए हैं। गुरुभगवंत के लिए उपाश्रय का निर्माण भी किया जाएगा।
मंदिर की कारीगरी में लगभग 600-700 पीले पत्थरों की प्रतिमाएँ, जैसे बाघ, हाथी, घोड़ा, मोर, और कल्पवृक्ष, आदि की नक्काशी का कार्य निरंतर चल रहा है। यह कार्य बैंगलोर, पुणे, मुंबई, और सूरत के ट्रस्टियों के संयुक्त सहयोग और निर्देश के अनुसार हो रहा है। मंदिर के निर्माण कार्य के 2025-26 तक पूरा होने की संभावना है, और उसी समय इसकी प्रतिष्ठा भी की जाएगी।
यह जानकारी जिरावला धाम के स्वप्नकर्ता और मैनेजिंग ट्रस्टी श्री भावेश पारेख ने दी।
