साध्वी जिनाज्ञा श्री जी ने गाए गुणगान- डॉ. राज श्री जी ने संयमी जीवन के 41वें वर्ष में प्रवेश किया
महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : लेकटाउन श्री संघ के प्रांगण में महासाध्वी डॉ. राजश्रीजी म. सा. का 41वां दीक्षा दिवस आध्यात्मिक रूप से मनाया गया।
इस विशेष अवसर पर साध्वी जिनाज्ञाश्रीजी ने अपनी गुरुणी के गुणों का वर्णन करते हुए कहा कि डॉ. राजश्रीजी का जीवन सेवा, सहयोग, समर्पण और समन्वय से भरा हुआ है। उन्होंने कहा, “ऐसी महान साध्वी के साथ शिष्या के रूप में रहने का सौभाग्य मेरा परम भाग्य है।”
साध्वी जिनाज्ञाश्रीजी ने बताया कि गुरुणीसा हमेशा अपनी गुरु मां पूज्य चरित्रप्रभाजी के सेवा में समर्पित रही हैं। बचपन से ही धर्म के प्रति विशेष प्रेम होने के कारण उन्होंने अल्प आयु में ही दीक्षा ग्रहण की और पिछले 40 वर्षों से अपना जीवन जिन शासन को समर्पित किया है।
अपने उद्बोधन में साध्वी जिनाज्ञाश्रीजी ने संयम का महत्व बताते हुए कहा कि हमें जिव्हा, आंख, कान और शरीर पर संयम रखना चाहिए। उन्होंने कहा, “जिव्हा से मीठे और विनम्र शब्द बोलें, आंखों से अच्छी चीजें देखें, कानों से अच्छी बातें सुनें, और शरीर से संयम बरतें।”
आकुर्डी-निगडी-प्राधिकरण श्री संघ के अध्यक्ष सुभाष ललवाणी ने इस अवसर पर डॉ. राजश्रीजी को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि आकुर्डी में आयोजित स्वर्णिम चातुर्मास, म.सा. के सान्निध्य में एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक आयोजन बना। उन्होंने म.सा. के प्रवचन और धर्म आराधना शैली की भी सराहना की।
लेकटाउन संघ के महामंत्री अभय भुरट ने उपस्थित सभी महानुभावों का स्वागत करते हुए डॉ. राजश्रीजी को बधाई दी। संघाध्यक्षा कमलबाई कर्नावट ने भी इस अवसर पर शुभकामनाएं प्रेषित कीं।
