महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : मन के तूफानों को साथ लेकर नींद के अधीन होना है, या बाहरी दुनिया को भुलाकर शांति से नींद लेनी है, यह तय करना हमारा खुद का काम है। इसके लिए ज़रूरी है कि हम अपनी नींद के स्वयं ‘स्वामी’ बनें, ऐसा प्रतिपादन प. पू. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने किया।
प. पू. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने कहा कि नींद यह क्रिया हम सभी के द्वारा सहज रूप से घटती है। लेकिन नींद की कला सभी को नहीं आती। नींद को ‘कला’ कहने के पीछे विशेष कारण है, जहां भी कला होती है, वहां स्वाभाविक रूप से सौंदर्य भी आता है।
जहां कला नहीं, वहां सौंदर्य नहीं; और जहां सौंदर्य नहीं, वहां शिव अर्थात दिव्य शक्ति नहीं होती। और जहां शिव नहीं, वहां सत्य भी नहीं होता। इसलिए ही कहा गया है, सत्यम, शिवम्, सुंदरम्।
जब सत्य शिवमय और सुंदर होता है, तभी वह सत्य अधिक आकर्षक और अनुभूतिपूर्ण लगता है।
ठीक वैसे ही नींद की अवस्था भी होती है। नींद एक सत्य अवस्था है, शिवमय है और सुंदर भी है, और उसे वैसी ही होनी चाहिए। नींद की इस विश्राम अवस्था से जीवन को एक नया आयाम मिलता है। बीता हुआ दिन और बीती हुई रात कभी लौटकर नहीं आते।
रात के अंधकार में यदि जीवन को सार्थक बनाने का प्रयास किया जाए, तो उजाले के साथ एक नया अध्यात्मिक आरंभ हो सकता है। जैसे आंखें बंद होते ही प्रमाद (अविवेक) उभर सकता है, वैसे ही आंखें बंद होते ही ध्यान की अवस्था भी प्राप्त की जा सकती है।
इसके लिए जीवन जीते हुए, अपने ऊपर और अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण आवश्यक है। मान लीजिए, अगर मैंने एक घंटा कार्य किया तो मुझे उसके बदले में कुछ पाने की अपेक्षा होती है। यदि उस एक घंटे से जो कुछ मिला वह सुखदायक लगता है, तो सोचिए कि रोज़ाना 6-7 घंटे की नींद से हमारे शरीर में कितनी प्रचुर ऊर्जा उत्पन्न होती होगी!
जब हम कोई क्रिया करते हैं, तो हमारी पाँचों इंद्रियाँ सक्रिय होती हैं। लेकिन नींद की अवस्था में हम इतने गहरे सोते हैं कि चलना, बोलना, देखना, खड़ा रहना, ये सारी क्रियाएँ बंद हो जाती हैं। हमारे चारों ओर होने वाली गतिविधियाँ – जैसे दृश्य, आवाज़ें, गंध, स्वाद, स्पर्श, इनका हमें अनुभव नहीं होता। इसका अर्थ है कि हमारी इंद्रियाँ भी नींद में विश्राम की अवस्था में होती हैं।
असल में, नींद एक स्वाभाविक क्रिया है। लेकिन यदि हम इस क्रिया को जागरूकता और विवेक के साथ नियंत्रित करना सीखें, तो इससे प्राप्त होने वाली ऊर्जा कहीं अधिक शक्तिशाली होगी। तब हम परिस्थितियों के गुलाम नहीं रहेंगे, बल्कि अपने निर्णयों और विचारों के स्वामी बनकर जीवन जी सकेंगे।
इसके लिए करना यही है कि नींद लेने से पहले खुद को ‘निराकार’ करना है, आत्मरूप में स्थित होकर सोना है। यदि हम मन में पछतावा, बीती बातों की चिंता या भविष्य की चिंता लेकर सोएंगे, तो मन में केवल द्वेष का तूफान उठेगा। क्योंकि नींद विकारों का कारण भी बन सकती है और स्वस्थता का स्रोत भी। इसलिए यह देखने की ज़रूरत है कि नींद रोग का घर न बने, बल्कि योग का मंदिर बने।
