महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : एक व्यक्ति के रूप में जब हम आगे बढ़ते हैं, तो हमें कैसा बनना चाहिए, इसका सार अंतगड सूत्र में बताया गया है। जीवन जीते समय हम बहुत सी बातें केवल सतही रूप से देखते हैं और उसी तरह जीते हैं। गहराई से चिंतन नहीं करते। इसके लिए हमें स्वयं आत्मपरीक्षण कर अपने अंदर बदलाव लाना चाहिए। यह बदलाव लाने के लिए अंतगड सूत्र अत्यंत उपयोगी सिद्ध होता है। इसे आचरण में लाने से हमारे भीतर सकारात्मक परिवर्तन आते हैं, ऐसा प्रतिपादन प. पु. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने किया।
प. पू. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने आगे कहा, आत्मपरीक्षण करते समय एक बात अवश्य देखें। मेरे पास सब कुछ होते हुए भी ‘मैं अकेला हूँ’ – ऐसी कमी की भावना क्यों आती है? यह अकेलेपन की भावना हमें लगातार खाती रहती है।
लेकिन ऐसा क्यों होता है? हमारे पास अपने अनुभव साझा करने, बातें कहने के लिए अपने निकट संबंधी होते हैं। पर कभी-कभी वही निकट के लोग हमें पराए लगने लगते हैं। तब हम अपने अनुभव उनके साथ साझा नहीं कर पाते या करने की इच्छा भी नहीं होती। यही कारण है कि नजदीकी रिश्तों और मित्रता में दूरी उत्पन्न होती है।
यदि कोई कार्य करते समय वह सफल नहीं होता, उसमें बार-बार अड़चनें आती हैं, तो उस समय स्वयं के भीतर झाँककर देखें – क्या कभी हम किसी और के काम में बाधा बने थे? ऐसे अनुभव और कठिनाइयाँ जब जीवन में आती हैं, तब आत्मपरीक्षण करना बहुत आवश्यक होता है।
स्वयं को परखना चाहिए और फिर समझना चाहिए कि मैं जिस राह पर चल रहा हूँ, वह सही है या नहीं। उस राह पर समस्याएँ अधिक हैं या समाधान अधिक है? इसी आधार पर यह स्पष्ट होता है कि हमारे विचार किस दिशा में हैं और उन्हें किस दिशा में होना चाहिए। इसके लिए हमारे हाथों से पुण्यकर्म होना आवश्यक है।
जीवन में यदि पुण्यकर्म किए जाएँ तो निश्चित ही सुख और समाधान हमें स्वयं तलाशते हुए आएँगे। जो व्यक्ति अपना व्यक्तित्व गढ़ना चाहता है, वह सही मार्ग स्वीकार कर उस मार्ग पर अच्छे कार्य करने का प्रयत्न करता है।
ऐसे व्यक्ति सदैव सत्य का मार्ग अपनाते हैं। सत्य बोलने से शंका का निवारण होता है, सत्य बोलने से संतोष प्राप्त होता है और सत्य बोलने से बढ़ते हुए विवाद भी सुलझ जाते हैं। हमारे शरीर, मन, आत्मा और इंद्रियाँ जो भी दिखा रही हैं, उसके पार जाकर हमें सत्य देखना चाहिए। हमारी इंद्रियाँ अक्सर हमें केवल ‘अर्धसत्य’ ही दिखाती हैं। और अर्धसत्य असत्य से भी अधिक खतरनाक होता है।
लेकिन सत्य बोलते समय परिस्थितियों का ध्यान रखना आवश्यक है। यदि कोई सत्य अनावश्यक समस्या खड़ी करता है, तो उसे टालना भी बुद्धिमानी है। “दृष्टि आड़ सृष्टि” की कहावत के अनुसार, कुछ भ्रांतियाँ वैसे ही बनी रहें तो अच्छा होता है।
जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है – संशय को स्थान न देना। संशय चाहे कितना भी छोटा क्यों न हो, वह जीवन में तूफ़ान खड़ा कर सकता है। यदि घर के लोगों या किसी अन्य पर संदेह हो भी जाए, तो उसे खुलकर कहें।
विवाद से अधिक संवाद को महत्व दें। प्रत्येक व्यक्ति की किसी न किसी पर श्रद्धा और आस्था होती है। उस आस्था को आघात न पहुँचाएँ, वरना आपसी अविश्वास बढ़ता है। आपसी विश्वास से ही सामुदायिक चेतना का विकास होता है।
इसका अर्थ है – “मैं” से अधिक “हम” महत्वपूर्ण हैं। इससे आपसी एकता और संगठन स्पष्ट होता है। इसी प्रकार दुख का अंत करने वाले सूत्र अंतगड सूत्र में बताए गए हैं।















