पुणे : कितने दुःख की बात है कि लक्ष्मी बहुत होते हुए भी थोड़ी लगती है और सरस्वती (ज्ञान) कम होते हुए भी अधिक लगती है ऐसा प्रतिपादन पं.राजरक्षितविजयजी ने किया।
श्री संभवनाथ जिनालय गुलटेकडी जैनसंध पुना मे पंन्यास राजरक्षितविजयजी ने कहा, जन्म से पहले हमारे पास जो नहीं था और हमारे मृत्यु के बाद अपने पास रहने वाले नहीं ऐसे भौतिक वस्तुओं पर अपनी मिल्कत समजंना बड़ी मूर्खता का कारण है। जन्म के बाद शरीर पर जो पहला कपड़ा (बलोटाया) डाला जाता है उसमें जेब नहीं होती है। यहां तक कि मरने के बाद डाले जाने वाले कफन में भी जेब नहीं होती है। हालाँकि, अज्ञानी मानव अपनी जेबें भरने के लिए देशद्रोह, भ्रष्टाचार, मिलावट, अधर्म, दुरूपयोग के माध्यम से लोगों को धोखा दे रहे हैं। अतृप्त (असंतुष्ट) व्यक्ति को दुसरे की थाली मे लडू बडा दिखता है। लक्ष्मी (पैसा) अनेक होते हुए भी अल्प प्रतीत होती है। सरस्वती (ज्ञान) कम होते हुए भी अधिक प्रतीत होती है। इसके कारण व्यक्ति हमेशा आकुलऔर बेचैन रहता है। लेकिन वस्तुओं को प्राप्त करने की इच्छा जितनी अधिक होगी, मानसिक (दुःख)कष्ट उतना ही अधिक होगा। कमाया हुआ धन परलोक में नहीं आएगा। लेकिन धन पाने के लिए किए गए काले कर्म, ली गई आहें (बद्दूआ) परलोक में साथ साथ चलेंगी। हाईफाई हॉस्पिटल का आईसीयू वार्ड मे अरबपतियों, रईसों, को बिस्तरों पर लेटे मरीजों को देखो। जिनके एक कॉल से शेयर बाजार में हंगामा मच जाता था. आज मुँह पर बैठी मक्खी को उड़ाने की ताकत नहीं रही। शरीर-धन-सत्ता के लिए भूत की तरह दौड़ता एक आदमी मरने के बाद लोगों की स्मृति में एक अखबार में सात-आठ पंक्तियों का मृत्युलेख छोड़ जाता है। झोली में जान ही जहान है. इसलिए उधार लेने की मानसिकता छोड़ें और उदार मानसिकता विकसित करें। प्रतिदिन दयालुता का एक कार्य करने का संकल्प लें।