महाराष्ट्र न्युज नेटवर्क : अभिजित डुंगरवाल
पुणे : श्री राजस्थानी जैन श्वे.मु.संघ इचलकरंजी में पहली बार वर्षीतप का आयोजन हुआ। जिसमें 118 भाई-बहन शामिल हुए। 425 दिन की तपस्या में 225 उपवास और 200 बियासणा किये गये। श्रीसंध की ओर से प्रातःकालीन बियासणा की सुन्दर भक्ति हुई। तपस्वियों को शत्रुंजय तीर्थ, हस्तिनापुर तीर्थ, शंखेश्वर तीर्थ आदि स्थानों पर ले जाया गया।
वर्षीतप की पारणा के अवसर पर पंन्यास राजरक्षितविजयजी, पंन्यास नयरक्षितविजयजी आदि साधु-साध्वीजी भगवन्त को निश्रा प्रदान करने की विनंति की गई। पांच दिवसीय भव्य पारणा महोत्सव हुआ। स्व. कनुबेन नथमलजी राठौड़ परिवार ने शाही पारणे का लाभ उठाया और 118 तपस्वियों को पारणा करवाया। सभी आराधको ने छोटे-बड़े नियम लेकर तपधर्म को अंगीकार किया।
पं. राजरक्षितविजयजी ने कहा कि वर्षीतप की पारणा के अवसर पर उन्हें इचलकरंजी आना हुआ। पत्थर को तराशने से मूर्ति बनती है। मिट्टी कुम्हार से मिल जाये तो कुंभ बन जाता है। इसी प्रकार यदि यहां के लोगों को उपयुक्त सद्गुरु मिले तो संध का काफी विकास होगा।
महान तपस्या के दौरान जो गलतियाँ हुई हैं, उनके लिए सद्गुरु से शुद्ध प्रायश्चित करना चाहिए। वर्षीतप की धूमधाम पूरी हो गई है। अब नई पीढ़ी को संस्कारित बनाने पर विशेष ध्यान देना होगा।
किशोर बच्चों के लिए पाठशाला और प्रभु पूजा अनिवार्य करें।
संस्कार विहीन साक्षर व्यक्ति देश-समाज-परिवार के लिए घातक हो जाता है। भ्रष्टाचार-अन्याय-राष्ट्रद्रोह जितना अशिक्षित – शहरी और अमीर करते हैं। इतना अशिक्षित-ग्रामीण और गरीब नही करते है। पं. नयरक्षितविजयजी ने सभी तपस्वियों को आशीर्वाद दिया।
श्रीसंध के ट्रस्टियों, कार्यकर्ताओं उदार श्रेष्ठी का अनुमोदन किया। अध्यक्ष प्रकाशभाई राठौड़, विक्रम राठौड़ आदि ने गुरुभक्ति-संघभक्ति एवं प्रभुभक्ति का अनुमोदन किया। 12/13 मई को श्री कुम्भोज गिरि तीर्थ में निवेश करेंगे।
