पं. राजरक्षितविजयजी का श्री आगम मंदिर कात्रज जैनतीर्थ मे व्याख्यान
महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : जीवन में शांति, समाधि, सुख पाने के लिए सबसे पहले जीभ को शांत करना होगा, विचारों को शांत करना होगा। क्योंकि शस्त्रों के घाव मलम से भरते हैं परंतु शब्दों के घाव दिन-ब-दिन बढ़ते हैं। यदि बोलना ही हो तो सर्वथा हितकर, प्रेमपूर्ण तथा मैत्रीपूर्ण वाणी बोलें। यह आवाहन पं. राजरक्षितविजयजी ने श्री आगम मंदिर कात्रज जैनतीर्थ मे व्याख्यान में किया।
श्री पंन्यास राजरक्षितविजयजी ने कहा, मनुष्य एक दुकान है और जीभ उसका ताला है। ताला खोलने पर पता चल जाता है कि दुकान में सोना-चांदी है या कबाड़ भरा है। कौआ और कोयल दोनों पक्षी हैं। श्याम है लेकिन कोयल मीठा बोलकर दुनिया जीत लेती है। जब कौए को कटु वाणी बोलने से अपमान होता है। एक कड़वा वचन जीवन को दु:खी बना देता है।
एक कोमल वचन जीवन को वृन्दावन बना देता है। रामायण-महाभारत के महान युद्धों की नींव कटुं जुबान से रखी गई थी। मंथरा की जीभ और कैकेयी के कान ने रामायण की रचना की। द्रौपदी की कड़वी जीभ और दुर्योधन के कानों ने महाभारत रचाया। जीभ (वचन) जीवन को सजा सकती है और प्रज्वलित कर सकती है।
शब्द मलम का भी काम कर सकते हैं, मसाले का भी काम कर सकते हैं। एक तौत्री जीभ फिर भी चल सकती है, लेकिन एक तोछंरी जीभ कभी चल नहीं सकती। दुनिया की नब्बे प्रतिशत समस्याओं की जड़ें कड़वे शब्दों में हैं।
जीवन में शांति, समाधि, सुख पाने के लिए सबसे पहले जीभ को शांत करना होगा, विचारों को शांत करना होगा जीवन में शांति, समाधि, सुख पाने के लिए सबसे पहले जीभ को शांत करना होगा, विचारों को शांत करना होगा और पांचों इंद्रियों को शांत करना होगा। शरीर पर हथियारों के घाव तो भर जाते हैं, लेकिन मन के स्तर पर शब्दों के घाव नहीं भरते।
यदि बोलना ही हो तो सर्वथा हितकर, प्रेमपूर्ण तथा मैत्रीपूर्ण वाणी बोलें। 30 जून को सुबह 8 बजे शांतिनगर कोंढवा से पं. राजरक्षितविजयजी आदि का नगर प्रवेश हुवा है। 108 गिरनार सोसाइटी से पूज्यश्री सामैया सहित पधारें। पूना शहर में प्रवेश से युवाओं में बहुत खुशी का माहोल हैं।
