श्री आदिनाथ सोसायाटी जैनसंधमे किया मार्गदर्शन
महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : जीवन में सफल कैसे हों, इस पर क्लास्सिस होता हैं । लेकिन असफलता को केसे पचाया जाए इस पर अधिक क्लास्सिस की आवश्यकता है।इस तरह का मार्गदर्शन श्री आदिनाथ सोसायाटी जैनसंध पूना में पं. राजरक्षितविजयजी ने किया ।
उन्होंने कहा कि आत्मविकास में दु:ख बाधक नहीं होता बल्कि सुख बाधक बनता है। दु:ख में भगवान का निरंतर स्मरण होता है। सुख में भगवान को भूल जाना बिल्कुल संभव है।
हमारे यहां एक कहावत है, सुख में स्मरण सोनी का, दु:ख में स्मरण राम का। सुख में नई कार, नया फर्नीचर, विदेश यात्रा, ब्रांडेड कपड़े लाने की गतिविधि होती है।
जब दु:ख आता है तो भगवान का नाम, भक्ति, जप करने की इच्छा होती है। वह शायर ने कहा है की , वह सुख पर पत्थर पड़ो, प्रभु हृदय से जाय, बलिहारी वह दुःख की हरपल प्रभु रटाय।
जब दुःख आए तब दीनता न लाना बल्कि श्रद्धापूर्वक प्रभु का स्मरण करें। जब सुख आये तब बेफाम मत बनना. लेकिन पीड़ित लोगों को मदद करना । सुख आने पर सावधान रहना और दुःख आने पर समाधि में रहना। मनुष्य को दुःख से भी अधिक दुःख की कल्पना उदास करती है।
जीवन में सफल कैसे हों, इस पर क्लास्सिस होता हैं । लेकिन असफलता को केसे पचाया जाए इस पर अधिक क्लासेस की आवश्यकता है। सीनियर केजी के बच्चे तीन-चार प्रतिशत कम अंक आने पर भी डिप्रेस हो जाते हैं।
बाल विशेष. डॉ. के पास काउंसिलिंग करानी पड़ती है। माता-पिता को बच्चों का विकास और प्रगति के सपने दिखाने के बजाय जीवन में सफलता और विफलता के उतार-चढ़ाव का व्यावहारिक ज्ञान देना चाहिए ।
आज की विज्ञापन तकनीकों ने लोगों को यह महसूस कराया है कि टकले लोग भी कंगी खरीदने के लिए उत्साहित हो जाते हैं। तकनीक का विवेकपूर्ण उपयोग कर खुद को बचाना चाहिए। आप सुख का आनंद तभी उठा सकते हैं जब आप अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखें।