श्री आदिनाथ सोसाइटी जैन संघ में किया मार्गदर्शन
महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : विश्व के सभी जीवों के साथ मैत्री करनी है, लेकिन इसकी शुरुआत घर से करनी चाहिए। इस प्रकार के विचार पं. राजरक्षितविजयजी ने प्रवचन के दौरान व्यक्त किए।
श्री आदिनाथ सोसाइटी में पं. राजरक्षितविजयजी ने कहा कि पं. नयरक्षितविजयजी ने पर्युषण प्रवचन माला में भरी सभा में कहा कि वैर (शत्रुता) विष से भी अधिक भयानक है। ज़हर एक भव को मारता है, वैर भवो-भव को बर्बाद कर देता है।
शत्रुंजय तीर्थ की तीन हजार सीढ़ियाँ चढ़ना आसान है, लेकिन जिसके साथ मन दुखी हुआ है उसे माफ करने के लिए उसके घर की तीन सीढ़ियाँ चढ़ना मुश्किल है।
रामायण में राम, रावण, लक्ष्मण, लव-कुश की मृत्यु का वर्णन है, लेकिन मंथरा की मृत्यु का वर्णन कभी नहीं आता।
यानी मंथरा आज भी घर-घर में जीवित है, जो घर को तोड़ने का काम करती है। पर्युषण पर्व में प्रत्येक साधक को संकल्प लेना चाहिए कि मैं सुई का काम करूंगा, कैंची का काम नहीं करूंगा। एक दर्जी के पास सुई और कैंची दोनों होती हैं, लेकिन कपड़े को काटने वाली कैंची दर्जी के पैरों के नीचे होती है, और सुई का स्थान टोपी में होता है। जो संघ, समाज, और देश को जोड़ने का काम करता है, वह उद्धव गति प्राप्त करता है। जो तोड़ने का काम करता है, वह अधोगति प्राप्त करता है।
युवा वक्ता पं. राजरक्षितविजयजी ने कहा कि संसार के सभी प्राणियों से मित्रतापूर्ण व्यवहार करें, लेकिन शुरुआत माता-पिता, पत्नी, बच्चों, और नौकरों से करें। प्रेम का वर्तुल स्वजन केंद्रित नहीं, बल्कि सर्वजन केंद्रित होना चाहिए। दूसरों की गलती देखकर और सुनकर हमने कई बार फायरिंग की है। आइए अब हम ‘मिच्छामि दुक्कडं’ मंत्र द्वारा फायर ब्रिगेड का काम शुरू करें।
