महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे: डिग्री-लक्षी, नोकरी-लक्षी, मैकॉले शिक्षण ने मनुष्य को एक मशीन जैसा बना दिया है। आज के स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में माता-पिता की सेवा, बड़ों का सम्मान, पाप का डर और कृतज्ञता जैसे संस्कारी पाठ पढ़ाए जाते हैं क्या? संस्कारहीन साक्षर व्यक्ति राक्षस बनकर देश, समाज और परिवार के लिए घातक बन जाता है। इस प्रकार के विचार पं. राजरक्षितविजयजी ने श्री आदिनाथ सोसायटी जैन संघ में व्यक्त किए।
पं. राजरक्षितविजयजी ने मार्गदर्शन करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में विद्या (ज्ञान) का अत्यधिक महत्व है। विद्या को परिभाषित करते हुए कहा गया है, “सा विद्या या विमुक्तये,” अर्थात विद्या वह है जो आत्मा को दोष, दुर्गुण और दुःख से मुक्त करे। विद्या का उद्देश्य मानव को सद्गुणी, संस्कारी और सदाचारी बनाना होना चाहिए।
लगभग 200 वर्ष पहले इस देश में भारतीय परंपराओं के आभूषण स्वरूप सैकड़ों तपोवन और गुरुकुल थे, जिनमें विद्यार्थियों को 72 कलाएं और विद्यार्थिनियों को 64 कलाएं सिखाई जाती थीं। उन्हें भौतिक जीवन में आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ अर्थ और काम पर नियंत्रण रखने के लिए धर्म का भी शिक्षण दिया जाता था। इस कारण, नीतिमान और सदाचारी सज्जनों की संख्या बढ़ रही थी।
‘परधन पत्थर समान, परनारी माता समान’ की विचारधारा घर-घर में गूंजती थी। संस्कार-लक्षी और आत्म-लक्षी ज्ञान के कारण दया, करुणा, उदारता और सरलता जैसे सद्गुणों के धारणकर्ता सैकड़ों नर-नारी इस देश को समृद्ध बना रहे थे।
लेकिन आज की स्थिति इसके विपरीत है। आज के स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में माता-पिता की सेवा, बड़ों का सम्मान, पाप का डर और कृतज्ञता जैसे संस्कारी पाठ पढ़ाए जाते हैं क्या? संस्कारहीन साक्षर व्यक्ति राक्षस बनकर देश, समाज और परिवार के लिए घातक हो जाता है।
बिना संस्कार के शिक्षा आतंकवादी संस्था के समान है, जो पहले अपने ही घर में बम (कुसंस्कार) के विस्फोट की शिक्षा देती है। इसे मानें या न मानें, यह एक सिद्ध तथ्य है।
रविवार, 29 सितंबर को सुबह 9:30 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक यंगस्टर यूथ के लिए नंदुभवन कोंढवा में एल.टी.एस. शिविर आयोजित किया जाएगा। युवा वक्ता पंन्यास नयरक्षितविजयजी महाराज “जस्ट बीइंग बिंदास” विषय पर 3 हजार युवाओं को संबोधित करेंगे। एल.टी.एस. शिविर को लेकर पुणे के युवाओं में काफी उत्साह है।
