महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : हमारे चलने का जो आधार है, वह ध्यान शुद्ध और निर्मल होना चाहिए। अपने भीतर विचारों की स्पष्टता और दूरदृष्टि होनी चाहिए, ताकि यह भान बना रहे कि हम अंधकार में चल रहे हैं या प्रकाश में। ऐसा वक्तव्य परिवर्तन चातुर्मास २०२५ के अंतर्गत आयोजित प्रवचन माला में प. पू. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने दिया।
उन्होंने कहा कि रोज़मर्रा के जीवन में हम अनजाने में अनेक क्रियाएं करते रहते हैं। जैसे चलना, बैठना, खड़ा होना, खाना, बोलना और सोना। ये हमारी मूलभूत जीवन क्रियाएं हैं। यदि इन क्रियाओं को हम बिना किसी गलती के, सही रीति से करें, तो हमारे जीवन में निश्चित ही परिवर्तन आ सकता है।
इन क्रियाओं को करते समय जैसे हमारा ध्यान केंद्रित होना चाहिए, वैसे ही यह भी महत्वपूर्ण है कि हम ये क्रियाएं किस आधार पर और किस समय कर रहे हैं। तभी हमें अपनी जीवन यात्रा की दिशा स्पष्ट दिखाई देगी। लेकिन इस यात्रा में चलते समय हम किसका आधार ले रहे हैं यह सबसे महत्वपूर्ण होता है।
इसका उदाहरण देते हुए प. पू. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने कहा, “द्रोणाचार्य ने दुर्योधन का आधार लिया, और उसका क्या परिणाम हुआ, यह सर्वविदित है। दुर्योधन ने शकुनि का सहारा लिया, कैकयी ने मंथरा का और इन सभी के परिणाम हम जानते हैं। लेकिन जब अर्जुन ने श्रीकृष्ण का सहारा लिया, तो परिणाम कितना उज्ज्वल हुआ।
इसलिए हम कौन हैं, इससे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि हम किसका आधार लेते हैं।” इसी से हमारे विचारों में निश्चितता, स्पष्टता और निष्ठा आती है। जिस क्षण ये गुण हमारे भीतर आते हैं, उसी क्षण आत्मविश्वास भी जन्म लेता है।
जीवन यात्रा में अवसर की प्रतीक्षा करने के बजाय, जो अवसर सामने आया है उसे पहचानें। केवल अवसर की राह देखने वाले वहीं अटक जाते हैं और अक्सर सफलता से चूक जाते हैं। इसलिए जो अवसर मिले, उसका पूर्ण उपयोग करना आवश्यक है। इसके विपरीत, यदि आप सिर्फ बहाने बनाते रहेंगे, कारण गिनाते रहेंगे या स्वयं को उचित ठहराते रहेंगे, तो जीवन में कभी सफलता नहीं मिलेगी।
इसलिए अपनी भावनाओं से ‘बहाने रूपी बीमारी’ को बाहर निकालना अति आवश्यक है। आप अपने जीवन का वह क्षण याद करें जब आपने कोई बहाना बनाया था तब उस बहाने का परिणाम केवल पछतावे के रूप में ही सामने आया होगा।
लेकिन अगर आपने उन बहानों पर विजय पाकर अवसर का सदुपयोग किया, तो निश्चित ही आपने अपने आत्म-सम्मान और सफलता पर गर्व महसूस किया होगा। सफल व्यक्ति कोई अलग कार्य नहीं करता, बल्कि वह कार्यों को अलग ढंग से करता है और अपने अंदाज़ से अलग पहचान बनाता है।
उसके मन में न संदेह होता है, न ही द्विविधा इसलिए वह आत्मविश्वास से कदम बढ़ाता है। मैं आपसे कोई कठिन कार्य करने को नहीं कह रहा हूँ, सिर्फ यह बता रहा हूँ कि जो चीज़ें आप रोज़मर्रा में करते हैं, उन्हें थोड़े ध्यान से, सही ढंग से करें।
इसलिए पहले स्वयं को पहचानें। स्वयं अपने जीवन में परिवर्तन लाने का प्रयास करें। जीवन की राह पर यदि आपने ज्ञान, दर्शन और चरित्र का आधार लिया, तो इसका अर्थ है कि आपकी जीवन यात्रा अब एक प्रकाशमान मार्ग पर आरंभ हो चुकी है।
