महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : धर्मजागरण हमारा उद्देश्य है या पाप को बढ़ाना यह प्रश्न स्वयं से अवश्य पूछना चाहिए। हर समय हमारे सामने सकारात्मक और नकारात्मक संभावनाएँ होती हैं। हमारी वाणी का जल हम किस बीज को देते हैं, यह चयन हमारे हाथ में होता है। जीवन में धर्मजागरण को ही लक्ष्य बनाकर आगे बढ़ें, ऐसा संदेश प. पू. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने दिया। वे परिवर्तन चातुर्मास 2025 के अंतर्गत आयोजित प्रवचनमाला में बोल रहे थे।
प. पू. प्रवीण ऋषिजी म. सा. ने कहा कि हमारे मन की भावना की अभिव्यक्ति जिस माध्यम से होती है, उसे भाषा कहते हैं। यही भाषा दूसरों के मन तक पहुँचने का कार्य करती है। शब्दों से भावना और भावनाओं से शब्दों का जन्म होता है।
आप ऐसी भाषा बोल रहे हैं जो धर्म को जाग्रत करती है, या ऐसी जो पाप को? यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। क्या आपकी वाणी से किसी के मन में कटुता जागेगी या प्रेम उत्पन्न होगा? क्या आपकी भाषा वासना और विकार को भड़काएगी या उनका नाश करेगी? इन बातों में सजग रहना आवश्यक है, चाहे जानबूझकर हो या अनजाने में।
कभी-कभी कोई व्यक्ति गुरु वचन को पूरी तरह समझे बिना भी बोले, तब भी उसके भीतर की दिव्यता जागृत हो सकती है। यह एक अनोखा आयाम है, जिसे हमें समझना चाहिए। उन्होंने आगे कहा, अपने भीतर एक बीज बोते रहो।
कौन-सा बीज अंकुरित होगा, यह पहले से नहीं कहा जा सकता। जीवन में हमें सिंचन किसका करना है, पाप का या पुण्य का? शांति का या अशांति का? यह निर्णय हमारा है। जिसके पास प्रभावशाली भाषा होती है, वही मास्टर माइंड बनता है।
आपको पाप का मास्टर माइंड बनना है या पुण्य का, यह चुनाव आपको स्वयं करना होगा। हर एक के भीतर एक कैकेयी होती है, उसे मंथरा से दूर रखना आवश्यक है। और इसके लिए मूर्ख तथा अज्ञानी लोगों की संगति से दूर रहना चाहिए।















