महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : तलवार से युद्ध जीता नहीं जा सकता, ताकत कलाई में होनी चाहिए। कलाई की ताकत को बनाए रखने और बढ़ाने का काम अगर कोई करता है तो वह बहन करती है। बहन-भाई का रिश्ता दुनिया का सबसे सुंदर रिश्ता है, ऐसा प्रतिपादन प. पू. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने किया। परिवर्तन चातुर्मास 2025 की “मैं चाहिए” प्रवचन माला में वे बोल रहे थे। आज रक्षाबंधन के अवसर पर रक्षाबंधन के त्यौहार का इतिहास, प्राचीन परंपरा और आज के समय में उसका महत्व, इस विषय पर उन्होंने प्रबोधन किया।
प. पू. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने कहा – इस त्यौहार का इतिहास पहले जान लें। हमें दुनिया का इतिहास पता होता है, लेकिन अपने धर्म का इतिहास हम नहीं जानते। रक्षाबंधन का त्यौहार यदि दुनिया को किसी ने दिया है, तो वह जैन धर्म ने दिया है। जहाँ कोई भी नहीं पहुँच सकता, वहाँ भाई के लिए बहन पहुँचती है।
भाई को ईश्वर बनाने वाला रक्षाबंधन का उत्सव है। इस उत्सव की पवित्रता और महत्व हमें बनाए रखना चाहिए। उन्होंने कहा- प्रत्येक विधि करते समय उसमें भावपूर्णता होनी आवश्यक है। चाहे वह तिलक लगाना हो या प्रसाद देना हो, उसमें भाव होना जरूरी है। यदि आप चाहते हैं कि आपकी बहन अपने ससुराल में आनंदपूर्वक रहे, तो उसके पति को भी गृहस्थाश्रम की दीक्षा देना आवश्यक है।
बहन यदि अपने घर में सुखी होगी, तभी आप भी अपने घर में सुखी रह सकते हैं। इसके लिए बहन और उसके पति को “ब्लिसफुल कपल” की संकल्पना समझने के लिए साथ आना आवश्यक है। वहाँ आने के लिए भाइयों को आग्रह करना चाहिए।
