महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : आजकल की बदलती जीवनशैली में अंतगडसूत्र की बहुत आवश्यकता है। अपने भाग्य को दोष देने के बजाय, अपना भाग्य स्वयं कैसे बनाया जा सकता है, इसका सूत्र इस अंतगडसूत्र में बताया गया है। अर्थात, अंतगडसूत्र में स्वयं के अस्तित्व का स्वामी कैसे बना जा सकता है, यह भी समझाया गया है। नियति ने जो परिस्थितियाँ हमारे सामने रखी हैं, उन्हें वैसे ही स्वीकार न करते हुए उनका समाधान निकालना चाहिए। अपना कर्म अपने ही हाथों से बदलना चाहिए, ऐसा प्रतिपादन प. पु. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने किया।
प. पू. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने आगे कहा, जिसकी उत्पत्ति हुई है, उसका कभी न कभी लय होना ही है। यह संसार का पहला सिद्धांत है। लेकिन अस्तित्व ही एकमात्र ऐसी चीज़ है, जिसे मिटाने का प्रयास किया गया तो भी वह मिटाई नहीं जा सकती।
साथ ही, कोई भी घटना घटती है तो उसके पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होता है। यह संसार का दूसरा सिद्धांत है। घटना क्यों घटी? इसका कारण खोजते समय आप किस दृष्टि से उसे खोजते हैं, उसी पर आपका अस्तित्व निर्भर करता है। यानी इन दोनों नियमों में अस्तित्व दांव पर लगा रहता है।
यदि किसी घटना के घटने से पहले ही उसके पीछे का कारण पहचानकर उस पर विचारपूर्वक कार्य किया, उसे सुधारने या बदलने का प्रयत्न किया, तो उससे उत्पन्न परिणाम निश्चित ही अलग या बदला हुआ होगा।
इसलिए किसी भी कार्य या क्रिया से पहले उसके पीछे का कारण जानकर उस पर कार्य करना चाहिए। यही नियम जीवन में आने वाले दुःख और समस्याओं पर भी लागू होता है। प. पु. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने कहा, समस्या का समाधान आप किस प्रकार खोजते हैं, उसी पर आपकी छवि निर्मित होती है।
यदि कोई उद्देश्य मन में रखकर उसे पूरे मन से साधा जाए, तो वह अवश्य ही पूर्ण होता है। लेकिन उसके पीछे आपकी इच्छाशक्ति भी उतनी ही प्रबल होनी चाहिए। मान लीजिए, यदि आप सुखी और प्रसन्न रहेंगे, तो जीवन आनंद से परिपूर्ण रहेगा। परंतु यदि आप अपने हृदय में दुःख और समस्याएँ संजोए रखेंगे, तो आपके हिस्से में दुःख और निराशा ही आएगी।
इसीलिए, मन में धारण किए गए विचार किस प्रकार के हैं, इस पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है। अक्सर हम जो हमारे पास नहीं है, उसी के बारे में सोचते रहते हैं। अर्थात, जो वस्तु अस्तित्व में ही नहीं है, उसी की कल्पना करते रहते हैं और मन के खेल में उलझते रहते हैं।
इससे केवल समस्याएँ ही जन्म लेती हैं। अब यह महत्वपूर्ण है कि इन समस्याओं का समाधान आप किस तरीके से करते हैं। समाधान यदि अविवेक, अविचार या क्रोध से किया, तो उसका परिणाम अलग होगा। लेकिन यदि वही समाधान शांति, संयम और विवेक के साथ खोजा, तो ही अपने अस्तित्व पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है।
एक बार यदि यह नियंत्रण मिल गया, तो किसी भी परिस्थिति का सामना किया जा सकता है। उससे सही मार्ग निकाला जा सकता है। उस समय भले ही सभी रास्ते बंद दिखाई दें, लेकिन आपके विचारपूर्वक लिए गए निर्णय से वही रास्ता राजमार्ग बन सकता है और यही आपके संयमी अस्तित्व का प्रमाण होगा।















