महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : अपने प्रगति-पत्र पर अड़चन न डालने वाले व्यक्ति जीवन में अवश्य मिलने चाहिए। इसके लिए आकाश में ऊँची उड़ान भरने वाले हर किसी के पंखों में विश्वास की ताक़त देने के लिए हमें सदैव तत्पर रहना चाहिए ऐसा प्रतिपादन प. पू. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने किया।
प. पू. प्रवीण ऋषिजी म. सा. ने कहा कि किसी का विश्वास अर्जित करना या किसी पर विश्वास दिखाना, स्वयं को या उस व्यक्ति को नई ऊर्जा देने के समान है। “विश्वास” शब्द में सामने वाले की ताक़त बढ़ाने की शक्ति होती है।
जताया गया विश्वास किसी के लिए प्रेरणादायी और उत्साहवर्धक होता है। इसमें उसके कौशल और क्षमताओं पर आस्था का भाव निहित होता है। इसलिए कोई भी काम करते समय हम उसमें कितने सफल हुए, उससे ज़्यादा महत्वपूर्ण यह है कि उसे करने में हमने कितनी मेहनत की।
काम करते समय हम कितने विश्वास से खुद को झोंकते हैं, यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है। सफलता मिले या न मिले यह बाद की बात है, पर उसके लिए विश्वास के साथ खड़े रहना ज़रूरी है।
अपने बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए सिर्फ़ इतना कहना – “तुम कर सकते हो” – भी पर्याप्त होता है।
इससे उन्हें प्रोत्साहन मिलता है। लेकिन अगर हम अविश्वास दिखाएँ, तो किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले ही उनके आत्मविश्वास में डगमगाहट आ जाती है। जिसे आसमान में उड़ान भरनी है, उसे भरने दीजिए।
उसके पैरों में अविश्वास या विरोध की बेड़ियाँ डालकर उसे अपने मोहपाश में मत बाँधिए। ऐसा करने का अर्थ है कि हम उसे अपने पंखों तले लेकर गुलामी में रख रहे हैं। स्वतंत्रता देना, वह जो कर रहा है उसे मान्यता देना – यही जीवन का सच्चा सूत्र है।
आपसी संबंध कैसे सहजता से चलेंगे और उनसे मैत्रीपूर्ण वातावरण कैसे बनेगा, इसकी हमें सावधानी रखनी चाहिए। मन में अगर वैरभावना उत्पन्न होने लगे, तो केवल अपने भीतर और आसपास की परिस्थितियों में अशांति उत्पन्न होती है।
इसलिए कोई भी निर्णय लेते समय, उत्तर देते समय या कोई कार्य करते समय स्वयं को थोड़ा समय दीजिए और फिर ही प्रतिक्रिया कीजिए। क्योंकि जो हम सहज रूप से देखते हैं और जो हम जान-बूझकर गहराई से देखते हैं, उसमें अंतर होता है। देखना एक साधारण क्रिया है, लेकिन “बिना देखे समझना” यह आत्मा से उत्पन्न होने वाली सजग क्रिया है।
अर्थात, सुख के पीछे छिपा हुआ दुःख जिसे दिखाई देता है और पहचान में आता है, वही मोक्ष मार्ग पर चलता है। इसके लिए सामने वाले के मन को समझना, उसकी क्षमताओं और कौशल पर विश्वास रखना, उसे स्वतंत्रता देना और उसकी क्रियाओं को मान्यता देना – यह हमारे हाथ में है।















