महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : पारदर्शिता से रिश्ते विश्वास तक पहुँचते हैं। हमारे शरीर में अगर कोई अचानक बदलाव होता है, तो वह दवा से ठीक हो सकता है। लेकिन अगर ऐसा बदलाव रिश्तों में अनपेक्षित रूप से आ जाए, तो रिश्ते टूटने में देर नहीं लगती।
चातुर्मास के समापन अवसर पर बोलते हुए प. पू. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने संघशक्ति के महत्त्व पर विशेष जोर दिया। उन्होंने कहा, “सभी देवताओं, गंधर्वों या गुरु परंपराओं को वंदन करने से पहले हमें संघशक्ति को वंदन करना चाहिए, क्योंकि हम जो कुछ भी हैं, वह संघ की मदद और संघ की शक्ति से ही हैं। संघ के बिना हम अधूरे हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “आज के तकनीकी युग में हम अपने भीतर एकांत ढूँढने लगे हैं और उसे ही महत्त्व देने लगे हैं। वास्तव में, यह अकेलेपन से जीने का मार्ग गलत है।” चातुर्मास काल में सभी के सहयोग के लिए उन्होंने हृदयपूर्वक कृतज्ञता व्यक्त की।















