महाराष्ट्र जैन वार्ता : अभिजित डुंगरवाल
पुणे : प्रत्येक प्राणी में विशेष गुण देखने के लिए विवेक की दूरबीन हाथ में लेनी चाहिए ऐसा प्रतिपादन पं. राजरक्षितविजयजी ने किया।
श्री सुमतिनाथ जिनालय राजस्थानी जैनसंध कराड़ पं. राजरक्षितविजयजी ने कहा कि प्रतिशोध जहर से भी ज्यादा खतरनाक है। विष एक भव मारता हैं लेकिन वैर भवोभव मारता हैं। मानवभव वैरका विसर्जन करने के लिए है बढाने के लिए नही हैं। जो शत्रुता मिटा देता है वह शक्तिशाली हो जाता है। जो शत्रुता पैदा करता है वह क्रूर हो जाता है। वैरभाव सहित मृत्यु बालमरण है।
क्षमा के साथ मृत्यु एक पंडित मृत्यु है। गुणवान बनने के लिए सद्गुणी के गुणों को देखकर आनंद लेना चाहिए। प्रत्येक जीव में विशेष गुण होते हैं। इसे देखने के लिए दूरबीन लेनी चाहिए। खुशबू की चाहत रखने वाला पौधा ऊपर काँटा नहीं बल्कि गुलाब देखता है।
तृषातुर व्यक्ति नदी में कीचड़ नहीं बल्कि ऊपर बहता साफ पानी देखता है। इसी प्रकार, जो लोग योग्यता के लिए प्रयास रत हैं वे हर जीव में शिव को देखते हैं। क्या शीशे के घर में रहने वाला इंसान किसी दूसरे के शीशे के घर पर पत्थर फेंक सकता है? अनेक अवगुणों से परिपूर्ण होकर भी हम दूसरों के अवगुणों की निंदा कर सकते हैं? चलो…दोषद्रष्टि के कौवे बनकर दौषविष्ता में चोंच मत मारो।
परंतु गुणदृष्टि के राजहंस होकर गुणमोती के चारे चरना है। एक अमीर पिता अपने बच्चों को संपत्ति विरासत में देता है। इस प्रकार परमपिता प्रभु महावीर स्वामीजी ने हमें संस्कार, सद्गुण, सद्बुद्धि की विरासत दी है।
जैन कुल में जन्म लेने मात्र से ही मांस, मदिरा, शिकार, जुआ आदि सात व्यसन आसानी से छूट गये। अहिंसा, अमृषा, अचौर्य, सदाचार, अपरिग्रह को अणुव्रत शैली दिखाकर अनेक पापों से बचाया। प्राणियों के प्रति मैत्री, पुण्यात्माओं के प्रति हर्ष, पीड़ितों के प्रति करुणा, पापियों के प्रति मध्यस्थता। भगवान महावीर ने किसी भी प्राणी से घृणा करने को नहीं कहा।















