पं. राजरक्षितविजयजी का भोर में मार्गदर्शन
महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : पारसमणि लोहे को सोना बना देती है। लेकिन सत्संग पापी को परमात्मा और भोगीको भगवान बना देता है। इस समय कल्याण मित्रों का अकाल और कुमित्रों का सुकाल है। कुसंग कभी मत करो, सत्संग कभी मत छोड़ो। ऐसा आवाहन पंन्यास राजरक्षितविजयजीने श्री शांतिनाथ जिनालय भोर जैनसंध में किया।
पंन्यास राजरक्षितविजयजी ने कहा जीवन विकास में सत्संग की प्रमुख भूमिका है। जीवन के विनाश में कुसंग की प्रमुख भूमिका है। सत्संग हार्दिक होना चाहिए न कि कर्णवादी। अब विकास का युग नहीं बल्कि विलासिता का युग है।
स्पर्श, रस, ध्राण, चक्षु और कर्ण एक अत्यंत विलासितापूर्ण वातावरण है जो पाँचों इंद्रियों को झकझोर देता है। टीवी चैनल, फेसबुक, इंस्टाग्राम, वेब सीरीज, मोबाइल, यूट्यूब आदि आधुनिक टेक्नीक ने मानव मस्तिष्क को अनियंत्रित बना दिया है।
विलासिता के अनियंत्रित प्रयोग ने मानसिक पापों को उर्वर भूमि प्रदान की है। कल्याण मित्रों का अकाल और कुमित्रों का सूखा है। ऐसे प्रतिकूल वातावरण में पवित्र रहना लोहे को चबाने के समान है। यदि मानव जीवन को संवारना है तो सबसे पहले बड़े-बड़े पापों का त्याग करें। अक्षम्य पापों के लिए गहरा पश्चाताप करे।
सद्गुरु के पास जाओ और खुले मन से प्रायश्चित करो। धर्म आरंभ करने से पहले जीवन की मैली चादरों को पश्चाताप और प्रायश्चित की लोन्ड्रिमें साफ कर लें। उसके बाद छोटा सा धर्म भी विशेष फल देने वाला बन जायेगा। विश्व प्रसिद्ध चित्रकार भी गंदी दीवार पर असफल हो जाता है। यहां तक कि एक साधारण चित्रकार भी साफ दीवार पर सफल हो जाता है।
