महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : जैन समाज में वर्तमान समय में विवाह योग्य युवक-युवतियों के लिए उपयुक्त जीवनसाथी ढूँढना एक जटिल और चिंताजनक विषय बनता जा रहा है। ऐसे समय में समाजहित को सर्वोपरि मानकर पुणे निवासी पारसमल धोका ने ‘पारस मिलन बायोडाटा ग्रुप’ की स्थापना कर एक अनुकरणीय और प्रेरणादायी पहल की है।
बिना किसी शुल्क या व्यक्तिगत स्वार्थ के, केवल समाजसेवा की भावना से शुरू किए गए इस ग्रुप के माध्यम से पिछले पाँच महीनों में कुल 100 विवाह सफलतापूर्वक संपन्न हुए हैं। यह एक असाधारण उपलब्धि है, जो उनके समर्पण और निष्कलंक सेवाभाव का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
इन सफल विवाहों में महाराष्ट्र के विभिन्न शहरों और गांवों के साथ-साथ कर्नाटका एवं इंदौर जैसे राज्यों से भी रिश्ते तय हुए हैं। यह ग्रुप सिर्फ बायोडाटा के आदान-प्रदान तक सीमित नहीं है, बल्कि पारस धोका स्वयं दोनों परिवारों के बीच संवाद, विश्वास और समर्पण की भावना स्थापित करने में सक्रिय भूमिका निभाते हैं।
वे अपेक्षावादी सोच से परे हटकर लड़का-लड़की की खुशी को प्राथमिकता देने की सलाह देते हैं। शादी को लेन-देन का साधन माननेवालों, दहेज की अपेक्षा रखनेवालों या किसी भी प्रकार की शर्तें थोपनेवालों को वह विनम्रतापूर्वक “दूर से जय जिनेंद्र” कहते हैं। उनके अनुसार, सच्चा विवाह वहीं होता है जहाँ प्रेम, समझदारी और समानता हो – न कि अपेक्षा और लेन-देन।
यही दर्शन उनकी सेवा को पवित्रता और विश्वसनीयता प्रदान करता है। आज जब समाज में रिश्तों को जोड़ने के नाम पर व्यवसायिकता हावी हो चुकी है, ऐसे में पारस धोका का यह निःस्वार्थ प्रयास समाज को नई दिशा दिखा रहा है।
उनके इस कार्य को देखकर समाज में विवाह हेतु सेवा करने की प्रेरणा और जागरूकता का संचार हो रहा है। जो लोग समाजकार्य में रुचि रखते हैं या अपने परिजनों के लिए सुसंस्कारित जीवनसाथी की खोज कर रहे हैं, वे इस ग्रुप से जुड़कर लाभ ले सकते हैं।
उनका यह दृष्टिकोण विशेष रूप से सराहनीय है : “गुण मिलान से अधिक मन मिलान को प्राथमिकता दो। विवाह केवल दो व्यक्तियों का नहीं, बल्कि दो परिवारों का संस्कारी मिलन होता है। एक रिश्ता जोड़ना मतलब एक घर को मंदिर बनाना है।”
