चातुर्मास प्रवेश पर तीन अनुपम सेवाएं देकर रचा प्रेरणा का इतिहास
महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : जब धर्म और सेवा का संगम होता है, तब समाज में एक नई चेतना और उजाला फैलता है। तालेगांव जीरावाला पार्श्वनाथ जैन संघ के चातुर्मास प्रवेश के अवसर पर करण जेठमलजी जैन ने जो सेवाएं प्रस्तुत कीं, वे न केवल प्रशंसनीय रहीं, बल्कि उन्होंने पूरे समाज को प्रेरणा देने का कार्य किया।
पूज्य आचार्य भगवंत विजय विश्वकल्याण सूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में संपन्न इस चातुर्मास प्रवेश दिवस पर करण जेठमलजी जैन ने तीन महत्वपूर्ण धार्मिक सेवाओं के माध्यम से संघ में श्रद्धा और भावनात्मक ऊर्जा का संचार किया।
उन्होंने वर्षभर तपस्या कर रहे वर्षीतप आराधकों को शुद्ध कांसे की थाली का संपूर्ण सेट भेंट कर सम्मानित किया, जिससे समाज में तपस्या और संयम के प्रति आदरभाव और गहन श्रद्धा जागृत हुई। यह सम्मान केवल एक भेंट नहीं, बल्कि त्याग और तप के प्रति उनके अंतर्मन की निष्ठा का प्रतीक था।
चातुर्मास प्रवेश के इस पावन अवसर पर उन्होंने गुरुपूजन के अंतर्गत परंपरागत ‘कांबळी वोहराणा’ सेवा अर्पित कर गुरु-शिष्य परंपरा के प्रति आदर और निष्ठा को दर्शाया। इस सेवा में उनकी विनम्रता, श्रद्धा और सेवा भावना स्पष्ट झलकती है।
इसके अतिरिक्त, चातुर्मासिक अध्ययन के लिए उन्होंने धार्मिक साहित्य का ‘वोहराणा’ कर ज्ञानदान की परंपरा को आगे बढ़ाया। जैन परंपरा में ज्ञानदान को सर्वश्रेष्ठ दान माना गया है, और करण जेठमलजी जैन ने इसे साकार कर समाज में एक आदर्श प्रस्तुत किया।
करण जैन की सभी सेवाएं पूर्णतः निःस्वार्थ भावना से प्रेरित थीं। उन्होंने न मंचीय प्रदर्शन की इच्छा जताई, न प्रचार की आकांक्षा रखी। उनके अनुसार धर्म सेवा ही उनका कर्तव्य और उद्देश्य है, और उन्होंने उसी भावना से यह कार्य संपन्न किया।
उनका जीवन परंपरागत धार्मिक मूल्यों और सामाजिक उत्तरदायित्व का सुंदर संगम है। वे समाज की परंपराओं को न केवल निभाते हैं, बल्कि उन्हें जीवन में आत्मसात करते हुए नई पीढ़ी के लिए प्रेरणास्त्रोत भी बनते हैं।
उनके सेवाकार्यों का प्रभाव समाज के प्रत्येक स्तर पर स्पष्ट रूप से देखा गया। संघ में धार्मिक चेतना और श्रद्धा का संचार हुआ, युवाओं में धर्म सेवा के प्रति प्रेरणा जागृत हुई, और परंपराओं के प्रति सम्मानभाव में वृद्धि हुई। उनका यह सेवाभाव केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत मूल्यवान सिद्ध हुआ है।
करण जैन का जीवन युवाओं को यह संदेश देता है कि सफलता केवल धन या पद से नहीं मापी जाती, बल्कि सेवा, संस्कार और समाजहित के कार्यों में ही सच्ची समृद्धि और संतोष निहित होता है। उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि जब जीवन में परोपकार, धर्म और सेवा का समावेश होता है, तभी वह पूर्णता की ओर अग्रसर होता है।
आज के युग में जब स्वार्थ और बाह्य प्रदर्शन की भावना समाज में बढ़ रही है, ऐसे समय में करण जैन जैसे व्यक्तित्व आशा की किरण बनकर सामने आते हैं। उनका कार्य केवल जैन समाज ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण समाज के लिए प्रेरणादायी है।
समस्त संघ और समाज की ओर से उनके उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घायु जीवन की मंगलकामनाएं व्यक्त की गईं। समाज ने एक स्वर में उनके सेवाभाव को कोटिशः नमन करते हुए उन्हें सच्चे अर्थों में धर्म सेवा का प्रतीक माना।
