उपाध्याय प्रवर प. पू. प्रवीणऋषिजी म. सा. के सान्निध्य में चार माह तक खुली रहेगी भव्य प्रदर्शनी
महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : उपाध्याय प्रवर प. पू. श्री प्रवीणऋषिजी म. सा. के चातुर्मास अवसर पर वर्धमान सांस्कृतिक केंद्र में ‘ऋषि व्हिजन पैवेलियन’ नामक एक अद्वितीय आध्यात्मिक प्रदर्शनी का उद्घाटन उनके पावन सान्निध्य में एवं कांतीलाल मुनोत (निगड़ी) के शुभहस्ते उत्साहपूर्वक सम्पन्न हुआ।
इस पैवेलियन के माध्यम से उपाध्यायश्री के प्रेरणादायी कार्य और आध्यात्मिक यात्रा से समाज को विस्तृत परिचय हो, इस उद्देश्य से यह दालन साकार किया गया है। चार माह तक चलने वाली इस प्रदर्शनी में गुरुदेव के विविध उपक्रम, जीवनकार्य और तत्त्वज्ञान को प्रभावशाली दृश्य-श्राव्य माध्यमों के द्वारा प्रस्तुत किया गया है।
प्रदर्शनी में ‘गुरु आनंद ट्रस्ट चिचोंडी’, ‘अर्हम् विज्जा शिविर’, ‘आनंदतीर्थ के सभी कार्यक्रम’, ‘गौतम लब्धि फाउंडेशन’, ‘नवकार कलश’, ‘उत्तरध्यान सूत्र’, ‘महावीर गाथा’, ‘आनंद गाथा’ आदि उपक्रमों की विस्तृत जानकारी दी गई है। इस प्रदर्शनी की संकल्पना आदिनाथ संघ के अध्यक्ष अनिल नहार द्वारा प्रस्तुत की गई, और उन्हीं की प्रेरणा से यह आयोजन साकार हुआ।
इस पैवेलियन की रूपरेखा और निर्माण कार्य जितेंद्र पन्नालाल पितलिया के मार्गदर्शन में आर्किटेक्ट प्रांजल पितलिया, नीरज नवलखा एवं कौशल टाटिया द्वारा अत्यंत सुंदर रूप में साकार किया गया है। इस उपक्रम के मुख्य सहयोगी राजेंद्र कांतीलाल मुनोत हैं।
प्रदर्शनी के उद्घाटन अवसर पर अनिल नहार (अध्यक्ष – आदिनाथ स्थानक भवन), सुनील नहार (अध्यक्ष), राजश्री पारख (स्वागताध्यक्ष), विमल बाफना, रमणलाल लुंकड, राजेंद्र मुनोत समेत कई गणमान्य, श्रद्धालु एवं समाजबंधु बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।
यह प्रदर्शनी सभी के लिए नि:शुल्क खुली है और आगामी चार महीनों तक समाज हेतु उपलब्ध रहेगी। आयोजकों ने समाज के सभी श्रद्धालुओं से इस ‘ऋषि व्हिजन पैवेलियन’ में अवश्य पधारने का विशेष अनुरोध किया है।
यह पैवेलियन उपाध्यायश्री के विराट व्यक्तित्व और दिव्य कार्य का जीवंत प्रमाण है। प्रत्येक समाजबंधु को इसे अनुभव करना चाहिए। – राजेंद्र मुनोत
ऋषि विजन पैवेलियन’ एक आध्यात्मिक युग की झलक है । यह केवल प्रदर्शनी नहीं, बल्कि आंतरिक जागृति का केंद्र है। – विमल बाफना
गुरुदेव की शिक्षाओं को जन-जन तक पहुंचाने का ऐसा सशक्त माध्यम पहले कभी नहीं देखा। यह भावनात्मक और विचारात्मक दोनों ही स्तर पर अद्वितीय है। – रमणलाल लुंकड
