भारतीय संस्कृति और प्राचीन भाषाओं के संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम
महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : जैन समाज और भारतीय संस्कृति के लिए गौरवपूर्ण अवसर! वर्धमान एजुकेशन एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट, शिवाजीनगर, पुणे द्वारा बी.ए. एवं एम.ए. प्राकृत एंड जैन स्टडीज़ डिग्री प्रोग्राम्स का शुभारंभ किया जा रहा है। यह पहल भारतीय संस्कृति की सुरक्षा, प्राकृत व संस्कृत जैसी प्राचीन भाषाओं के विकास और संरक्षण की दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
वर्षों के सतत प्रयास और शैक्षणिक समर्पण के फलस्वरूप वर्धमान एजुकेशन एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट को विश्वकर्मा यूनिवर्सिटी एवं टिकाराम जगन्नाथ कला, वाणिज्य व विज्ञान महाविद्याल (सलग्न – सावित्रीबाई फुले पुणे युनिव्हर्सिटी, पुणे) से इन डिग्री प्रोग्राम्स की शुरुआत की अनुमति मिली है। यह पाठ्यक्रम यूजीसी के नियमानुसार सेमेस्टर सिस्टम एवं क्रेडिट बेस्ड सिस्टम के अंतर्गत संचालित होगा।
इन कोर्सेज़ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें दिगंबर, श्वेतांबर, मंदिरमार्गी, स्थानकवासी और तेरापंथी सभी जैन संप्रदायों के साहित्य का समन्वय किया गया है, जिससे यह पाठ्यक्रम अद्वितीय बन गया है। इसका मुख्य उद्देश्य प्राकृत भाषा का प्रचार-प्रसार करना तथा युवाओं को आधुनिक वैज्ञानिक युग में धर्म और संस्कृति से जोड़ना है।
अनुभवी प्रोफेसरों द्वारा डिज़ाइन किए गए इस सिलेबस में विद्यार्थियों की योग्यता एवं रुचि को ध्यान में रखते हुए विविध विषय शामिल किए गए हैं काव्य, नाटक, चरित्र साहित्य, स्तोत्र साहित्य, धर्म, दर्शन, ध्यान, सिद्धांत, संस्कृति, समाज, तत्त्वज्ञान, प्राकृत और आध्यात्मिक आराधनाएँ इत्यादि।
यह डिग्री प्रोग्राम जैन इतिहास, दर्शन, भाषा और संस्कृति में रुचि रखने वाले विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी होगा और उन्हें प्राचीन ज्ञान परंपरा की गहन समझ प्रदान करेगा।
