अध्यात्म के क्षितिज पर एक तेजस्वी संगम
महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : वर्धमान सांस्कृतिक केंद्र, गंगाधाम में प. पू. प्रविणऋषिजी म.सा. आदी ठाणा के सान्निध्य में चल रहा परिवर्तन चातुर्मास 2025 एक महान आध्यात्मिक उत्सव बन चुका है। इसी चातुर्मास के एक विशेष प्रसंग पर जैन समाज के दो तेजस्वी दीपों की ऐतिहासिक भेंट संपन्न हुई, विरायतन संस्थापिका प. पू. डॉ. चंदनाजी म.सा. ने यहाँ आकर प. पू. प्रविणऋषिजी म.सा. से सौजन्य भेंट की।
इन दो ऋषितुल्य विभूतियों के बीच लगभग एक घंटे तक गहन संवाद हुआ, जिसमें अध्यात्म, आत्मशुद्धि, धर्म का विस्तार और तीर्थ-निर्माण जैसे विषयों पर सारगर्भित चर्चा हुई।
इस पावन अवसर पर कई प्रतिष्ठित उद्योगपति और समाजसेवी उपस्थित रहे जिसमे अभय फिरोदिया, सतीश सुराणा अध्यक्ष- गुरु आनंद तीर्थ फौंडेशन, चिचोंडी, सुभाष मुथा, सुनील नाहर अध्यक्ष- चातुर्मास समिती, अनिल नाहर अध्यक्ष- आदिनाथ संघ, राजकुमार चोरडिया, राजेंद्र मुथा, सतीश लोढा, राजश्री पारख अध्यक्ष- स्वागत समिती, विमल बाफना, मधुबाला चोरडिया सहित अनेक गणमान्य जनों की भक्तिपूर्ण उपस्थिति ने वातावरण को और अधिक आध्यात्मिक बना दिया।
इस अवसर पर सतीश सुराणा ने चिचोंडी में निर्मित हो रहे ‘गुरु आनंद तीर्थ’ के बारे में जानकारी देते हुए प. पू. चंदनाजी म.सा. से वहाँ पधारने का अनुरोध किया। इस पर चंदनाजी म.सा. ने स्नेहपूर्वक उत्तर दिया, “जब प्रविणऋषिजी वहाँ होंगे, तब मैं अवश्य आऊँगी।”
साथ ही, प. पू. चंदनाजी म.सा. की प्रेरणा से प्रारंभ किए गए ‘अभय प्रभावना तीर्थ’ की यात्रा हेतु अभय फिरोदिया ने प. पू. प्रविणऋषिजी म.सा. को आमंत्रित किया। संवाद के दौरान डॉ. चंदनाजी म.सा. ने एक भावपूर्ण स्मृति भी साझा की “मेरी दीक्षा और जैन धर्म की प्रारंभिक शिक्षा प. पू. आनंदऋषिजी म. सा. के सान्निध्य में ही हुई थी।”
यह भेंट केवल दो संतों की मुलाकात नहीं थी, बल्कि जैन दर्शन के दो प्रवाहों का पावन संगम थी। परिवर्तन चातुर्मास के इतिहास में यह प्रसंग अमिट छाप छोड़ने वाला बन गया है। समाज के हृदय में आध्यात्मिक ऊर्जा और भावनात्मक चेतना का एक अविस्मरणीय क्षण।
