महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : जीवन जीते समय हमारी दृष्टि कैसी है, यह बहुत महत्त्वपूर्ण है। यदि दृष्टि सकारात्मक होगी तो हमें केवल अच्छी बातें ही दिखाई देंगी और हम केवल अच्छी बातें ही ग्रहण करेंगे। सकारात्मक दृष्टि के कारण बुरी बातें नज़र ही नहीं आएँगी, कुकर्म की भावना मन में उत्पन्न ही नहीं होगी, ऐसा प्रतिपादन प. पु. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने किया।
उन्होंने कहा कि कि जीवन की यात्रा में कई बातें हमारे साथ जुड़ती रहती हैं। कुछ हमारे साथ चलती हैं तो कुछ वहीं छूट जाती हैं। जैसे-जैसे जीवन उत्तरार्ध से अस्त की ओर बढ़ता है, तब हम अपनी सांसारिक वस्तुओं से लेकर इस देह तक सब कुछ यहीं छोड़कर जाते हैं।
अपना नाम, अपना चरित्र भी यहीं छोड़ना पड़ता है। आगे की यात्रा में केवल अर्जित ज्ञान, किसी पर की गई श्रद्धा और किया हुआ पुण्य ही काम आता है। अच्छे विचारों से अच्छे विचार ग्रहण करने पर, सकारात्मक शक्ति ग्रहण करने पर, हमारे हाथों से केवल सत्कर्म ही होते हैं।
सर्वत्र ईश्वर की ऊर्जा व्याप्त है। वह हमारी दृष्टि में आनी चाहिए। ईश्वर के नाम में जो ऊर्जा है, उसे हमें ग्रहण करना चाहिए। उसकी शक्ति का सहारा लेना चाहिए। यदि हमारे पास कोई कार्य करने की क्षमता न भी हो, तो भी ईश्वर की इस ऊर्जा के सहारे हम उस कार्य को सिद्धि तक पहुँचा सकते हैं। बस हमें उसे ग्रहण करना आना चाहिए।
ऊर्जा ग्रहण करने की सामर्थ्य अपने भीतर विकसित करनी चाहिए। संसार की वस्तुओं को ग्रहण करने को आसक्ति कहते हैं, परंतु ईश्वर की शक्ति को ग्रहण करने वाले को भक्त कहते हैं। इसके लिए मन में, परिवार में ईश्वर के प्रति असीम श्रद्धा और उसकी ऊर्जा के महत्व को स्थापित करना आवश्यक है।
















