महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : भगवान महावीर अपनी शिक्षा की शुरुआत हमारे स्वप्नों से करते हैं। स्वप्न अर्थात मनोरथ। कुछ स्वप्न हमारे अतीत से आते हैं, वे हमें दिखाई देते हैं, हम उन्हें देखते नहीं। भगवान महावीर कहते हैं – स्वयं स्वप्न देखना सीखो। आज जो संभव है, वहीं से शुरुआत करो। आज यदि एक कदम बढ़ाना संभव है, तो वहीं से शुरुआत करो। जितना संभव है, उतना अपनी पूरी क्षमता से करो, उसमें कोई समझौता मत करो। जो आज नहीं कर सकते, वह कल अवश्य कर सकेंगे – यह विश्वास रखो, ऐसा प्रतिपादन प. पू. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने किया।
प. पु. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने कहा – जब आप शुरुआत करेंगे, तब अनुभव होगा कि हम बहुत कुछ कर सकते हैं, लेकिन हमने कभी उसका विचार ही नहीं किया था। इसलिए शुरुआत करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
जितना भोग कम करोगे, उतनी ही अपनी शक्ति अपने आप बढ़ती जाएगी। जब यह आरंभ होगा, तो योग स्वतः ही आपके जीवन में उतर आएगा। जीवन में जो कर सकते हो, उसी का विचार करो। जो नहीं कर सकते, उसका विचार ही मत करो।
आज मैं क्या कर सकता हूँ-इसकी एक सूची बनाओ। छोटी-छोटी साधारण बातों से शुरुआत करो, उसमें भी आप अपनी ऊर्जा बचा सकते हो। जो पाप मैं करता ही नहीं, उससे मेरी मुक्ति हो-यही पचकाण का सूत्र है।
प. पू. प्रवीणऋषिजी म. सा. ने कहा – जो कर सकते हो, उसे किए बिना सोना मत। जो आज नहीं कर सकते, वह कल संभव होगा – यह विश्वास मन में रखो। जब मन में यह निश्चित हो जाए कि मैं क्या कर सकता हूँ, तो उसी दिशा में आप सक्रिय हो जाते हैं और करना शुरू कर देते हैं। इससे जीवन में बड़ा परिवर्तन आने लगता है।
आइए, हम सब मिलकर उसी दिशा में शुरुआत करें। जो संभव है, उसे अवश्य करना है। जो आज संभव नहीं है, वह भी कल संभव होगा – ऐसी आस्था और विश्वास मन में होना आवश्यक है। परमात्मा ने हमें आशा रखने को नहीं कहा, बल्कि श्रद्धा रखने को कहा है।
जो यह विश्वास रखता है कि “जो अभी संभव नहीं है, उसे भी मैं करूंगा” – वही विजयी होता है। जो केवल आज की संभावना तक सीमित रहता है, वह विकसित नहीं होता। लेकिन जो यह श्रद्धा और आस्था रखता है कि “जो आज संभव नहीं है, वह भी कल संभव होगा”, वही निरंतर उन्नति करता है। इसी से आप विजयी बनेंगे और सफलता के साथ-साथ संतोष भी प्राप्त करेंगे।
