महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : घोडनदी श्रीसंघ के वरिष्ठ श्रावक और समाजसेवा के प्रख्यात व्यक्तित्व कांतीलाल झुंबरलालजी बाफना (उम्र 87) का गुरुवार, 11 सितंबर 2025 की रात निधन हो गया। उनके निधन से जैन समाज और स्थानीय सामाजिक क्षेत्र में गहरा शोक व्याप्त है।
कांतीलालजी ने घोडनदी श्रीसंघ में लगातार 18 वर्षों तक ट्रस्टी के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और धर्म साधना को जीवन का आधार बनाया। 75 वर्ष की आयु तक उन्होंने 15 बार अठ्ठाई और ग्यारह के कठोर तप किए। आचार्य सम्राट प. पू. आनंदऋषिजी म. सा. के प्रति उनकी गहरी आस्था थी।
वर्ष 1948 में उन्होंने दीक्षा लेने का संकल्प भी किया था, किंतु नियति ने यह शुभ कार्य उनके भाग्य में नहीं लिखा। आचार्यभगवंत की गोद में बैठने का सौभाग्य उन्हें प्राप्त हुआ था और महासती प. पू. सुमतिकुवरजी म.सा. उन्हें स्नेहपूर्वक जम्बुकुमार कहकर पुकारती थीं।
परिवार से मिले धार्मिक और संस्कारमूलक वातावरण ने उनके व्यक्तित्व को समाज और राजनीति की दिशा में प्रेरित किया। उन्होंने राजनीति, समाजसेवा, धार्मिक-शैक्षणिक और सहकार जैसे विविध क्षेत्रों में आजीवन सक्रियता दिखाई। असंभव को संभव करने की जिद, कार्य में निडरता और स्पष्टता उनके जीवन की पहचान रही।
जैन समाज के साथ-साथ जैनतर समाज में भी उनकी विशिष्ट छवि थी। उनकी धर्मपत्नी सुभद्राबाई बाफना शांत, सात्विक और मिलनसार स्वभाव की थीं और उन्होंने 65 वर्षों के वैवाहिक जीवन में कांतीलालजी का हर कदम पर साथ निभाया। स्वयं भी उन्होंने 2000 से 2007 तक नगर परिषद शिरूर में नगरसेविका के रूप में कार्य करते हुए समाज के लिए उल्लेखनीय योगदान दिया।
परिवार में धार्मिक सेवा और समाजकार्यों की परंपरा को आगे बढ़ाने का कार्य निरंतर जारी है। ज्येष्ठ सुपुत्र संजय बाफना ने अपना संपूर्ण जीवन जैन साधु-संतों की सेवा में समर्पित किया है और सभी संप्रदायों के संतों से उनका निकट स्नेह है।
सेवा, वैय्यावच्च और आगमज्ञान उनकी प्रमुख विशेषताएं हैं। धाकटे सुपुत्र सुनील बाफना स्थानकवासी जैन कॉन्फ्रेंस, दिल्ली के ट्रस्टी और जैन कॉन्फ्रेंस महाराष्ट्र के अध्यक्ष (2022–24) रहे हैं और नगर परिषद में नगरसेवक व सभापति (2012–17) के रूप में भी सक्रिय रहे। कन्या मनीषा बोरा परिवार की बहू हैं और सामाजिक क्षेत्रों में निरंतर योगदान देकर अपनी अमिट छाप छोड़ रही हैं।
समाज, धर्म और मानवसेवा में कांतीलालजी का संपूर्ण जीवन प्रेरणादायी रहा। उनके उत्तराधिकारी उसी मार्ग पर चलते हुए उनके कार्यों को आगे बढ़ाते रहें, यही उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी। संपूर्ण बाफना परिवार और जैन समाज के लिए यह अपूरणीय क्षति है और सभी ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि उनकी आत्मा को इस भवभव से शीघ्र मुक्ति प्राप्त हो।
