महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : किसी समस्या का समाधान करने के बजाय यदि हम उस समस्या से दूर भागते रहें तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वह समस्या समाप्त हो जाएगी। जितना हम समस्या को टालने या उससे दूरी बनाए रखने का प्रयास करते हैं, उतना ही वह हमारे साथ या हमारे पीछे बनी रहती है। किसी समस्या से दूर भागना उसका समाधान नहीं है।
यदि हमें एक स्वच्छ, निर्मल और निष्कलंक जीवन जीना है, ईश्वर से संबंध जोड़ना है, प्रभु के चरणों में लीन होकर ईश्वरीय अनुभव प्राप्त करना है, तो सबसे पहले स्वयं को भीतर और बाहर से शुद्ध करना आवश्यक है।
यदि हम किसी के प्रति वैरभावना रखकर व्यवहार करते हैं तो उसका परिणाम हमें ही भुगतना पड़ता है। उसका दुष्प्रभाव हमारे मन और शरीर पर पड़ता है तथा मन की शांति भंग होती है। कई बार हमें लगता है कि हमने ईर्ष्या या वैरभावना मन से निकाल दी है, परंतु यदि हम ईमानदारी से अपने ही मन से प्रश्न करें तो पाएँगे कि वह भावना हमारे मन के किसी न किसी कोने में अब भी सहेजकर रखी हुई है।
ऐसी नकारात्मक भावनाओं का निवारण होना आवश्यक है। जब तक हम उन भावनाओं को पूरी तरह समाप्त नहीं करते, तब तक वे हमारे भीतर बनी रहती हैं और कब वे उग्र रूप धारण कर हमें हानि पहुँचाएँगी, यह हमें पता भी नहीं चलेगा।
इसलिए, किसी के प्रति रखी हुई नाराज़गी या वैरभावना पर ध्यान देकर यह समझना चाहिए कि वह व्यक्ति क्यों नाराज़ हुआ। यदि हम अपनी गलती मानकर कटुता समाप्त कर सकें, तभी संबंध स्थायी और सुरक्षित रह पाएँगे।
