महाराष्ट्र जैन वार्ता
पुणे : एक अच्छा फ़सल उगाने के लिए किसान ज़मीन पर कई प्रकार की प्रक्रिया करता है। जब ज़मीन की ठीक से जुताई और देखभाल होती है, तब वह उसमें बीज बोता है। जैसा बीज बोया जाता है, वैसा ही पौधा उगता है। लेकिन उस पौधे के बढ़ने के लिए अच्छा खाद और पानी भी ज़रूरी होता है। किसान अच्छी फ़सल के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा देता है, इसलिए उसे मिलने वाला उत्पादन भी उतना ही उत्तम और गुणकारी होता है। परंतु यदि उस खेत के खर-पतवार समय पर उखाड़कर नहीं फेंके गए, तो फ़सल के खराब होने की संभावना बढ़ जाती है।
ऐसे ऐसा ही हमारे मन के साथ भी होता है। हमारे मन पर कई बार बुरे और नकारात्मक विचार आघात करते हैं, और ऐसे विचारों का प्रभाव हम पर बहुत तीव्रता से होता है। हम पूरे ज़ोर से अपना क्रोध व्यक्त करते हैं। अपना अहंकार जताने में भी अपनी पूरी शक्ति लगा देते हैं।
लेकिन जब नामस्मरण, ध्यान या जप करने की बात आती है, तब हम अपनी पूरी शक्ति का उपयोग नहीं करते। उस समय चित्त विचलित हो जाता है। जब तुम किसी कार्य को पूरे मन, प्राण और श्रद्धा से करते हो, तब वह कार्य निश्चित ही सिद्ध होता है।
यदि किसी कार्य में अपनी शक्ति पर्वत के समान ऊँची और अटल रखी जाए, तो ज्ञान, दर्शन, शील और सफलता सर्वोच्च स्तर तक पहुँचते हैं। जहाँ पूरी शक्ति लगाई जाती है, वहाँ अनुभव अवश्य प्राप्त होता है। हम जो बोलते हैं, दूसरों को बताते हैं, उसे अपने जीवन में व्यवहार में लाना हमेशा संभव नहीं होता।
अपनी बहुत सी शक्ति हम रौद्र ध्यान में व्यय करते हैं यानी झूठ बोलने में, अविश्वास दिखाने में, हिंसा करने में। ऐसी शक्ति में हम स्वयं के साथ अपने निकटवर्तियों को भी पीड़ा पहुँचाते हैं। कर्म भले हम अकेले करते हों, लेकिन उसके परिणाम सबको भुगतने पड़ते हैं।
झूठ बोलने में जो शक्ति हम लगाते हैं, वही शक्ति हम सत्य बोलने में या दान देने में शायद ही लगाते हैं। किस कार्य में अपनी शक्ति व्यय करनी चाहिए, यह समझना बहुत आवश्यक है। मान लो, तुम सो रहे हो और तुम्हें प्यास लगी है, लेकिन फिर भी तुम उठकर पानी पीने का कष्ट नहीं करते।
किंतु उसी समय यदि कोई तुम्हें अपशब्द कहकर आहत कर दे, तो तुम तुरंत क्रोध में उठकर वाद-विवाद करने लगते हो। उस समय तुमने जो शक्ति लगाई, वह पूरी तरह व्यर्थ चली जाती है। हमारा मन एक शक्ति रूपी भूमि है। उस पर हम जो कुछ बोएँगे, वही उगेगा यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए।
इस पर क्या बोना है, इस पर सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिए। बीज एक ही बार बोया जाता है, लेकिन उससे उत्पन्न होने वाले फल अनेक बार आते हैं। एक पाप या एक पुण्य जो भी बोओगे, उसके फल उसी प्रकार भविष्य में मिलेंगे। इसलिए अपने मन की खेती ऐसे करो कि उसमें किसी प्रकार का तृण या बुराई टिक न पाए।
















